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MP Latest news: एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मुर्गे की मांग, स्कूल में दारू पार्टी

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बुरहानपुर के खकनार विकासखंड के ग्राम सोनुद का मामला

मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने शिक्षा के मंदिर को कलंकित करने का काम किया है। यहां चिकन-दारू पार्टी करने के लिए प्रिंसिपल और टीचर्स ने स्कूल में पढ़ने के लिए आए बच्चों की जल्दी छुट्टी कर दी। इसका वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इसके अलावा स्कूल में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स ने टीचरों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

मामला मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के खकनार विकासखंड के ग्राम सोनुद की प्राथमिक स्कूल का है। जानकारी के अनुसार स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा एडमिशन के नाम पर अभिभावक से मुर्गा मांगा गया था। उस मुर्गे की ही पार्टी स्कूल में चल रही थी। प्रिंसिपल पर आरोप है कि वो अक्सर एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मुर्गे की मांग करते हैं और उसके बाद शराब और मुर्गा पार्टी करने के लिए समय से पहले स्कूल बंद कर बच्चों को घर भेज देते है। पूरे मामले पर स्कूल में पढ़ रही एक छात्रा ने बताया कि हमारे स्कूल के सर अक्सर स्कूल में शराब पीकर पहुंचते हैं और पढ़ाते भी नहीं है। इतना ही नहीं वह शराब के इतने नशे मे रहते हैं कि पेंट में ही यूरिन कर देते हैं। सोनुद के रहने वाले पवन कुमार ने बताया कि स्कूल के प्रिंसिपल और सर ने एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मुर्गा और शराब की मांग की। जिसके बाद उन्होंने मिड-डे बनाने वाले किचन में ही उसको बनवाया। इन लोगों ने स्कूल में ही इसे खाया।

जब कलेक्टर सुश्री भव्य मित्तल से बात की तो उन्होंने बताया कि अगर इस तरह का मामला सामने आया है, तो इन तीनों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर इन पर जांच की जाएगी । क्योंकि शिक्षा के मंदिर में इस तरह का कृत्य कतई बर्दाश्त नहीं होगा।

कलेक्टर का बयान सर्वथा उचित है । परंतु जो ग्रामीण क्षेत्र हैं और सुदूर ग्रामीण क्षेत्र हैं, वहां पर शिक्षकों के साथ ही अन्य सरकारी अमले पर पदस्थ अधिकारियों कर्मचारियों की कभी जांच होती है ? कभी उनकी निगरानी होती है, कि वह आखिर क्या कर रहे हैं ? और यहां सवाल यदि हम शिक्षकों की करतूतों का ही करें, तो सरस्वती के मंदिर में इस प्रकार की घटना निश्चित रूप से निर्लज्जता की सीमा को पार कर देती है । स्कूल में दारू और मुर्गा की पार्टी, जहां सदैव माता सरस्वती विराजमान रहती है, इसको कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है ? और इन शिक्षकों के मानसिक स्तर को किस प्रकार से हम समझे कि यह स्वयं को शिक्षक मानते हैं अथवा नहीं ? यदि शिक्षक मानते हैं तो इस प्रकार की घटना को यह अंजाम दे ही नहीं सकते । लेकिन ऐसा नहीं है। यह स्वयं को शिक्षक नहीं, एक कर्मचारी मानते हैं, जिसका काम अपनी नौकरी करना और जितना से ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाया जा सके, उतना लाभ उठाना, यह रह गया है । अब शासन प्रशासन पर निर्भर करता है कि ऐसे शिक्षकों पर क्या कार्रवाई की जाए, और जो वीडियो वायरल हुआ है उसके बाद किसी प्रकार की जांच की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । ऐसे में तत्काल प्रभाव से आवश्यक कार्रवाई की जाना चाहिए और ऐसे शिक्षकों को शिक्षा देने की जिम्मेदारी कतई नहीं देना चाहिए, और इनको यह बता देना चाहिए कि उन्होंने बहुत गलत कार्य किया है। और इसकी सजा मात्र और मात्र यह है कि ये अपने घर बैठे, और अपने क्रियाकलापों पर जीवन भर विचार करें कि हमने क्या किया जो हमें नहीं करना चाहिए था।

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