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One Nation One Election: आरएसएस भी एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में

Which article vests electoral functions with the parliament

 

केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया है। केंद्रीय संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने गुरुवार को एक्स पर पोस्ट में ये जानकारी दी। केंद्र के इस कदम के बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकार इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव पर विधेयक ला सकती है। इस बीच, सामने आया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी इसके पक्ष में है। संघ का मानना है कि इससे सार्वजनिक धन और देश का समय बचेगा।

संघ भी इसके समर्थन में

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में है। संघ के मुताबिक इससे सार्वजनिक धन और देश का समय बचेगा क्योंकि मौजूदा व्यवस्था के तहत देश पूरे साल चुनाव मोड में रहता है। सूत्रों के मुताबिक संघ का यह भी मानना है कि एक साथ चुनाव से विकास कार्यों के निर्बाध कार्यान्वयन में मदद मिलेगी जो बार-बार होने वाले चुनावों और निर्वाचन आयोग की ओर से स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू करने के कारण प्रभावित होते हैं। संघ ने कहा, यह कदम देश के हित में है।

सूत्रों ने कहा कि अगर सभी चुनाव एक साथ होते हैं तो यह देश के लिए अच्छा है। इससे जनता का पैसा और देश का समय भी बचेगा। बार-बार चुनाव कराना न केवल महंगा पड़ता है, बल्कि इससे सरकारी कर्मचारी भी चुनाव ड्यूटी में लगे रहते हैं और आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्यों में बाधा आती है।

उन्होंने बताया कि आरएसएस का मानना है कि वास्तव में, देश में एक साथ चुनाव कराना संविधान निर्माताओं की इच्छा है। इसीलिए उन्होंने संविधान में एक साथ चुनाव का प्रावधान किया था। भारत ने आजादी के बाद चुनाव की इस प्रणाली के साथ अपनी यात्रा शुरू की थी। लेकिन दुर्भाग्य से बाद में राजनीतिक कारणों से इसे बदल दिया गया, जिसे अब देश के सर्वोत्तम हित में ठीक किया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे ने देशव्यापी बहस छेड़ दी है। सरकार ने भी इसकी व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। कोविंद की अध्यक्षता वाली यह समिति इस बात का पता लगाएंगी कि कैसे देश एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव कराने की स्थिति में वापस आ सकता है। जैसा कि 1967 तक होता था। इस बारे में वह विशेषज्ञों से बात करेंगे। साथ ही वे विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से भी परामर्श कर सकते हैं। इसके बाद से लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने की संभावनाओं को और बल मिला है।

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