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इस बार तीन गुना ज्यादा श्राद्ध, तर्पण कराने को ढूंढे नहीं मिल रहे पंडितजी

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कोरोना काल में मृत्यु को प्राप्त हुए थे सैकड़ों लोग, इस साल उन्हें श्राद्ध में लिए जाने से बड़ी संख्या

इस वर्ष श्राद्ध पक्ष में कुछ ऐसी स्थिति बन रही है कि प्रतिवर्ष होने वाले श्राद्ध से इस बार करीब तीन गुना अधिक श्राद्ध हो रहे हैं। इस कारण श्राद्ध-तर्पण करवाने के लिए पंडितों के पास काफी मात्रा में आयोजनों की बुकिंग है। कई पंडित तो एक दिन में चार से पांच जगहों पर पूजन करवा रहे हैं। ऐसे में कई परिवारों को तो पंडित जी ढूंढे से नहीं मिल रहे हैं।

सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद तीसरे साल से उसकी श्राद्ध क्रिया आरंभ कर दी जाती है। पिछले साल तक वर्ष 2018 तक मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के श्राद्ध किए जा रहे थे। पंडित रमाशंकर ने बताया कि वर्ष 2019 में कोरोना महामारी आई तो सामान्य वर्षों की अपेक्षा करीब तीन गुना अधिक मृत्यु हुई। उस कालखंड से करीब तीन साल बाद अर्थात इस वर्ष हर साल की अपेक्षा तीन गुना श्राद्ध बढ़ गए हैं। 29 सितंबर को श्राद्ध शुरू हो चुके हैं, जो 14 अक्टूबर तक चलेंगे।

पंडितों के लिए लोग कई दिनों पहले से ही चक्कर काट रहे हैं। परेशानी की बात यह है कि श्राद्ध तो 16 दिन चलेंगे, लेकिन तर्पण-श्राद्ध को तय तिथि पर ही किया जाता है। ऐसे में अधिकांश लोग पहले ही पंडित जी की बुकिंग करवा चुके हैं। अब जो बच गए हैं, उन्हें पंडित जी नहीं मिल रहे हैं।

दो विकल्पों में कर सकते हैं श्राद्ध

वैसे तो सभी पर्व अपने समय पर ही करने चाहिए, किंतु किन्हीं कारणों की वजह से मृत्यु के तीन साल बाद अगर शुक्ल पक्ष के तय भाद्रपद मास में श्राद्ध नहीं हुए, तो यजमान के पास दो विकल्प होते हैं। पहला कृष्ण पक्ष और दूसरा मृत्यु के पांचवें वर्ष में पितृ पक्ष में। कृष्ण पक्ष पितरों को प्रिय होता है। अगर यजमान को जल्दी पितरों के श्राद्ध करना हो तो हिंदी कैलेंडर की तिथि के अनुसार, कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को तर्पण श्राद्ध करवाने चाहिए। वहीं शास्त्रों में पांचवें वर्ष का भी विधान है। अगर यजमान को कोई जल्दी नहीं है या कोई समस्या नहीं है तो वह धैर्य के साथ पांचवें वर्ष भी पितरों का श्राद्ध कर सकता है।

इन कार्यों से नाराज होते हैं पितर

पंडित रमाशंकर ने बताया कि श्राद्ध कर्म करने वाले सदस्य को इन दिनों में अपने बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। श्राद्ध कर्म हमेशा दिन में करें। सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना अशुभ माना जाता है। इन दिनों में लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग नहीं खाना चाहिए। जानवरों या पक्षी को सताना या परेशान भी नहीं करना है।

श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान में यह है अंतर

आचार्य पिंगलेश कचौले ने बताया कि श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की विधियां अलग-अलग हैं। ज्योतिष और धर्म में श्राद्ध को लेकर कहा गया है पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया मुक्ति कर्म श्राद्ध है। जबकि तर्पण में पितरों, देवताओं, ऋषियों को तिल मिश्रित जल अर्पित कर उन्हें तृप्त किया जाता है। वहीं पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति के लिए सहज और सरल मार्ग माना गया है। यही वजह है कि पिंडदान या तर्पण के लिए बिहार का गया सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल है। ध्यान रहे कि तर्पण और पिंडदान श्राद्ध के ही दो हिस्से हैं।

पूरे 16 दिनों तक मेरे पास कार्यक्रम लगे हुए हैं। श्राद्ध के एक तर्पण कार्यक्रम को पूरे विधि-विधान से कराने में करीब तीन घंटे लगते हैं। इसकी वजह से मैं पूरे दिन में दो कार्यक्रम ही कर रहा हूं। पूरे दिन लोगों के यहां तर्पण कार्यक्रम तय होने के बाद कई लोगों को मना भी करना पड़ा है।
– पंडित शिव शंकर

हर साल की अपेक्षा इस बार श्राद्ध की संख्या काफी अधिक है। मृत्यु के तीन साल बाद श्राद्ध में लिया जाता है। इसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं। इसमें छह पिंड बनाए जाते हैं। सर्वप्रथम भगवान विष्णु, फिर पितरों के देवता और फिर पितरों का पूजन किया जाता है। श्राद्ध और तर्पण को पर्व पर ही किया जाना चाहिए।
– पंडित अगस्त्य व्यास

इस बार किस दिन कौन सा श्राद्ध

29 सितंबर, शुक्रवार को पूर्णिमा व प्रतिपदा।
30 सितंबर, शनिवार को द्वितीय तिथि।
1 अक्टूबर, रविवार तृतीया तिथि।
2 अक्टूबर, सोमवार चतुर्थी तिथि।
3 अक्टूबर, मंगलवार पंचमी तिथि।
4 अक्टूबर, बुधवार षष्ठी तिथि।
5 अक्टूबर, गुरुवार सप्तमी तिथि।
6 अक्टूबर, शुक्रवार अष्टमी तिथि।
7 अक्टूबर, शनिवार नवमी तिथि।
8 अक्टूबर, रविवार दशमी तिथि।
9 अक्टूबर, सोमवार कोई श्राद्ध नहीं ।
10 अक्टूबर, मंगलवार एकादशी तिथि।
11 अक्टूबर, बुधवार द्वादशी तिथि।
12 अक्टूबर, गुरुवार को त्रयोदशी तिथि।
13 अक्टूबर, शुक्रवार चतुर्दशी तिथि।
14 अक्टूबर, शनिवार को सर्वपितृ अमावस्या।

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