pitra moksha amavasya :- पितृ मोक्ष अमावस्या का महत्व : पंडित पी डी तिवारी

पंडित पी डी तिवारी

वैदिक काल एवं सनातन की रीति से पितृ मोक्ष अमावस्या का महत्व वर्ष भर की अमावस्याओं से अलग होता है क्योंकि इस दिन श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है एवं ऐसा वैदिक मत है कि इस दिन अपने पूर्वजों का, रिश्तेदारों का, एवं मित्रों का यदि आप किसी कारणवश तर्पण नहीं कर पाए तो आप पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन किसी जलाशय या नदी के तट पर तर्पण कर सकते हैं साथ ही जिनको अपने पूर्वजों की तिथि दिवंगत होने की पता नहीं है उनको भी विधान अनुमति देता है कि आप इस दिन तर्पण कर सकते हैं ऐसा विद्वानों का मत है कि पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन हम सभी पुरखों को वर्ष भर के लिए विदाई करते हैं जो की भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या को समाप्त होता है इन 16 दिनों में समूचा भारत वर्ष अपने पुरखों को चावल,जवा, काली तिल एवं दूध से नित्य प्रतिदिन तर्पण करते हैं। आज के दिन चावल, दही एवं शक्कर मिलाकर पुरखों को भोजन अर्पण करते हैं इसके पीछे यह मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में खट्टी मीठी यादें पुरखों के साथ बनी रहे इस वर्ष बड़ा संजोग है कि शनिवार को पितृ मोक्ष अमावस्या होने जा रही है यह विलक्षण संयोग वर्षों में एकाध बार बनता है इसका फायदा सभी को धर्म लाभ के रूप में लेना चाहिए। तर्पण विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक प्रक्रिया है हम सूर्य को साक्षी मानकर जल अर्पण करते हैं इससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है एवं ठीक पितृ मोक्ष अमावस्या के 1 दिन बाद नवरात्रि शुरू होते हैं इन नौ दिनों में हम सभी भारतवासी मां दुर्गा की आराधना शक्ति के रूप में करते हैं पितृ पक्ष के पहले 10 दिनों में गणेश स्थापना होती है वहां भक्ति की आराधना करते हैं, इस प्रकार हम भक्ति, ऊर्जा और शक्ति तीनों का आवाहन कर जीवन को मंगलमय बनाते हैं एवं नवीन ऊर्जा से अपने जीवन चक्र को संचालन करने योग्य बनाते हैं । तर्पण क्रिया – कर्मों से सिद्ध होता है की हमें जन्म देने वालों को हम लोगों ने भुलाया नहीं है बल्कि आदर सम्मान में समूचा हिंदू समाज वर्ष में एक बार पूरा पखवाड़ा पूर्वजों की यादों को नवीन व ताजा करने का निमित्त मात्र है।

सभी धार्मिक सज्जनों को पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना चाहिए एवं सांय काल में घी का दीपक जलाकर परिवार सहित उसके सम्मुख बैठकर पूर्वजों की याद में ओम शांति का पाठ करना चाहिए इससे भविष्य एवं संतान की गुणवत्ता बढ़ती है ऐसा वैदिक मत है। जीवन कल्याण मय होकर पूर्वजों की सद्गति व मोक्ष का साधन बनता है। श्राद्ध पक्ष का एक और लौकिक एवं वैदिक मत है की इन दिनों में जो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनको स्वर्ग के द्वार खुले हुए मिलते हैं ऐसी हिंदू समाज में मान्यता है जिसकी पुष्टि लोकगीतों में आज भी देखने को मिलती है।

 

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