इंदौर। 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में याददाश्त की कमजोरी होना एक मानसिक विकार माना जाता है। इसे डिमेंशिया कहते है। इसके प्रारंभिक लक्षणों में मरीज की याददाश्त कमजोर हो जाती है और वह भूलने लगता है। उसकी सोचने व समझने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसे लोग अपने दैनिक नित्यकर्म भी भूल जाते हैं। उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि कौन-सी वस्तु कहां रख दी है।
एमजीएम मेडिकल कालेज के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर व विभागध्यक्ष डा. वीएस पाल ने बताया कि इसके अलावा वे लोगों के नाम व पहचान भी भूलने लगते हैं। इसके अलावा ऐसे मरीजों में व्यावहारिक परेशानियों में चिड़चिड़ापन आता है और वे अपने स्वजन को भला-बुरा कहते रहते हैं। जब यह बीमारी गंभीर हो जाती है, तो ऐसे व्यक्तियों को कुछ काल्पनिक आभास होने लगता है। इसमें मरीज कहते हैं कि उन्हें कोई आकृति दिखाई दे रही है या अजीब-अजीब आवाजें सुनाई दे रही हैं, जबकि वास्तव में ऐसा कुछ होता ही नहीं है।
गंभीर होने पर मरीज खाना-पीना भी भूलने लगता है
बीमारी के अधिक गंभीर होने पर मरीज खाना-पीना भी भूलने लगता है। कई बार घर से बाहर जाने पर रास्ता भूल जाते हैं, तो कभी-कभी परिवार के सदस्यों को ही नहीं पहचान पाते। ऐसी स्थिति में वे दुर्घटना के शिकार भी हो सकते है। अत: ऐसे मरीजों को घर में एक सुरक्षित कमरे में रखना जरूरी है। उनके आसपास उनकी आवश्यकता की चीजें उपलब्ध करवाएं। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।
क्या करें
ऐसे मरीजों की दैनिक गतिविधि, भोजन आदि टाइम टेबल तय कर देना चाहिए। इससे उन्होंने दिन में कौन-सी गतिविधि की है, वह याद रहेगा। इस तरह के मरीजों के व्यवहार को शुरुआत में स्वजन समझ नहीं पाते, जिससे मरीजों में चिड़चिड़ापन और बढ़ जाता है। कई बार घर के लोग भी मरीजों के भूलने के व्यवहार से नाराज या परेशान हो जाते हैं। ऐसे मरीजों की देखभाल के लिए वैसे तो केयर टेकर नियुक्त किया जा सकता है, किंतु सबसे बेहतर हैकि घर के लोग अलग-अलग समय पर मरीज की देखभाल की जिम्मेदारी लें।