भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 9 सितंबर को आएगी। अनंत देव भगवान विष्णु का प्रतीक माने जाते हैं। अनंत के रूप में भगवान विष्णु का ही पूजन होता है। भगवान को अनंत इसलिए कहा गया है क्योंकि उनका न तो कोई आदि है और न अंत। इस तरह से जिसका अंत नहीं है वही अनंत हैं। भगवान को सभी गुणों से युक्त और परिपूर्ण माना गया है। इसलिए अनंत स्वरूप में उनका मंगलकारी पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस पूजन को विपत्ति काल में दूर करने के लिए किया जाता है। अनंत चतुर्दशी के पूजन से श्रद्धालु के सभी भय, परेशानियां, संकट और अभाव दूर हो जाते हैं। पुराणों में वर्णित है कि अगर 14 वर्ष तक लगातार यह पूजन किया जाए तो विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। इस चतुर्दशी के पूजन से श्रदधालु को संतान की प्राप्ति होती है और धन-धान्य सुख सौभाग्य प्राप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी के पूजन की विधि
अनंत चतुर्दशी का पूजन करने के लिए स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद, पूजन में धारण किए जाने वाले शुद्ध वस्त्र पहने जाना चाहिए। जिसके बाद जहां पूजन किया जाना है वहां एक लाल वस्त्र बिछाएं, उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें और कलश स्थापित करें कलश पर रक्षा सूत्र, जिसमें 14 गठानें लगी हों रख दें। (इस तरह का रक्षासूत्र बाजार में भी उपलब्ध रहता है।) बाजार से खरीदे गए रक्षासूत्र को शुद्ध कर लें और फिर इसका पूजन कर उसे कलश पर स्थापित कर दें। यह रक्षा सूत्र भगवान विष्णु का ही प्रतीक है। जिसकी हम अनंत स्वरूप में पूजा करते हैं।
पति-पत्नी द्वारा किया गया पूजन
पति-पत्नी द्वारा पूजन किए जाने पर दो रक्षासूत्र लेकर उनका पूजन करें और फिर उसे हाथों में धारण करें। पुराने रक्षासूत्र का विधिवत पूजन करें और फिर उसे किसी बहती हुई नदी या फिर पुराने तालाब में विर्जित कर दें। मान्यता के अनुसार रक्षासूत्र बांधने से सभी परेशानियां और बाधाएं दूर होती हैं।
श्रद्धालु का भगवान विष्णु मंगल करते हैं। यह पूजन करने वाले की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। यदि अनंत पूजन का अधिकार परंपरागत रूप से या किसी और कारण से किसी अन्य दंपति को दिया जाना है तो प्रथम वर्ष किए जाने वाले पूजन में उद्यापन किया जाता है। जिसमें 5 दंपति को जीमने का निमंत्रण दिया जाता है। विधिवत पूजन के बाद दंपति को भोजन-प्रसाद ग्रहण करवाया जाता है।