अक्षय फल प्रदान करने वाली आंवला नवमी मंगलवार को मनाई जा रही है। यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति व उसकी रक्षा के लिए पूजा करती हैं। आंवला नवमीं के दिन परिवार सहित आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है।
इस दिन भगवान विष्णु के प्रिय आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी से पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। साथ ही आत्मिक उन्नति के लिए अन्न, वस्त्र, कपड़े आदि का दान भी किया जाता है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है, इसलिए पूजन के बाद अपने पं. को या मंदिर के पुजारी को यथाशक्ति अन्न, रसोई सामग्री, वस्त्र, साल, कंबल, दक्षिणा आदि भेंटकर अपने व अपने परिवार के लिए आशीर्वाद लेना चाहिए।
108 परिक्रमा करने पर मनोकामनाएं होती हैं पूरी
आंवला नवमी के दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य विधि-विधान से आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से इस पर्व को मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान्न आदि का भोग लगाया जाता है। कई धर्मप्रेमी तो आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते हैं एवं परिवार सहित प्रसादी पाते हैं। कई जगह भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा, मौलीधागा लपेट कर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस तरह करें आंवला नवमी की पूजा
आंवला नवमी पर प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें।
आंवला के पेड़ के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्ये नम:’ मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों का तर्पण करें।
कपूर व घी के दीपक से आरती कर प्रदक्षिणा करें।
पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान्न आदि का भोग लगाएं।
आंवला वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें। ओम् नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करते हुए परिक्रमा करनी चाहिए।
आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दक्षिणा भेंट करें। खुद भी उसी वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करें।
इस दिन आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ माना जाता है। वैसे तो पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए, किंतु आंवले के वृक्ष को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसे घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है।
इस दिन पितरों के शीत निवारण के लिए ब्राह्मणों को ऊनी वस्त्र, साल व कंबल दान करना चाहिए।
अक्षय नवमी, धात्री तथा कूष्मांडा नवमी के नाम से भी जानी जाती है।
ऐसा माना जाता है की जिन बच्चों की स्मरण शक्ति या आंखें कमजोर हों तथा पढ़ाई में मन न लगता हो उन्हें आंवले का फल, मुरब्बा, मुख्वास, आंवले का च्यवनप्रास आदि उपयोग में लेना चाहिए।