जीवित्पुत्रिका व्रत का आज यानी की 17 सितंबर को नहाय खाय है। वहीं इसका निर्जला उपवास 18 सितंबर को रखा जाने वाला है। महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया था तो उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया था। जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु नष्ट हो गया था। तब भगवान कृष्ण ने इसे पुनः जीवित किया था। इस कारण से इसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तभी से सभी माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। आइए जानते हैं जितिया व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत के नियम क्या है, साथ ही पारण का क्या समय है।
इस दिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें। इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दी जाती है।