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स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच रचनात्मक सहयोग जरूरी

कृष्णमोहन झा

17वीं लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके ओम बिरला जिस दिन से 18 वीं लोकसभा अध्यक्ष चुने गए उसी दिन से लोकसभा की कार्यवाही में गतिरोध की शुरुआत हो गई। उल्लेखनीय है कि उन्हें लगातार दूसरी बार सदन के अध्यक्ष की आसंदी पर आसीन होने का सौभाग्य मिला है । सत्ता पक्ष द्वारा सदन का उपाध्यक्ष पद विपक्ष को दिए जाने की मांग ठुकरा दिए जाने के कारण उनका निर्विरोध निर्वाचन संभव नहीं हो सका। उनके विरोध में विपक्ष ने के आर सुरेश को अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के रूप में उतारा था लेकिन सत्तारूढ एनडीए का संख्या बल विपक्ष से अधिक होने के कारण 18 वीं लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि मेहताब ने ओम बिरला को ध्वनिमत से अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के मुख्य नेताओं ने ओम बिरला को सदन का अध्यक्ष चुने पर बधाई और शुभकामनाएं दी लेकिन अध्यक्ष की आसंदी पर आसीन होने के कुछ ही देर बाद जब ओम बिरला ने देश में 25 जून 1975 को लागू किए आपातकाल को काला अध्याय बताते हुए जब उसके विरोध में एक निंदा प्रस्ताव पेश किया तो सदन में विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया और नवनिर्वाचित लोकसभा अध्यक्ष ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ही दिन इस हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी । सदन में दूसरी बार टकराव की स्थिति तब बनी जब कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित शशि थरूर ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर शपथ लेने के बाद जय संविधान कहा। इस पर लोकसभा के अध्यक्ष ने कहा कि आप संविधान की ही शपथ ले रहे हैं। अध्यक्ष की इस टिप्पणी पर हरियाणा के पांच बार के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने खड़े होकर पूछा कि इसमें आपत्ति क्या है। लोकसभा अध्यक्ष को दीपेंद्र हुड्डा की यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने हुड्डा से तल्ख लहजे में कहा,मुझे सलाह मत दो बैठ जाओ। विपक्ष को पांच बार के सांसद के प्रति यह तल्खी पसंद नहीं आई । सदन में आमतौर पर शांत और संयत रहने वाले एक वरिष्ठ सांसद को इस तरह डपटने के लिए सदन के बाहर भी लोकसभा के अध्यक्ष की आलोचना की गई ।

18 वीं लोकसभा के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर गत शुक्रवार को धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने के के पूर्व ही जब विपक्ष ने नीट के मुद्दे पर चर्चा की ‌मांग की तो अध्यक्ष ओम बिरला ने उसे परंपरा के विरुद्ध मानते हुए अस्वीकार कर दिया। विपक्ष ने अपनी मांग पर अड़ते हुए जब हंगामा शुरू कर दिया तो अध्यक्ष ने फिर सदन की कार्यवाही को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया। सोमवार को सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सत्ता पक्ष की ओर से पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रारंभ बहस में में वह भाग लेने के लिए विपक्ष तैयार तो हुआ परंतु सदन में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के भाषण में बार बार सत्ता पक्ष को उत्तेजित करने की मंशा स्पष्ट महसूस की जा सकती थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि राहुल गांधी की बहुत सी टिप्पणियां केवल अनुमान पर आधारित थीं जिनके कोई विश्वसनीय प्रमाण उनके पास नहीं थे। किसानों की उपज की एम एस पी पर खरीद और शहीद अग्निवीरों को मुआवजा के संबंध में उन्होंने जो कुछ कहा उस पर तत्काल कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो राहुल गांधी अपनी बात के समर्थन में कोई संतोषजनक तथ्य प्रस्तुत करने में असफल रहे। हिंदू और हिंदुत्व के संबंध में उन्होंने जो तर्क दिए उसमें वे स्वयं फंसते नजर आए। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने बाद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की इन आपत्तिजनक टिप्पणियों को सदन की कार्यवाही से विलोपित कर दिया परंतु राहुल गांधी अभी भी अपनी उन आपत्तिजनक टिप्पणियों पर खेद व्यक्त करने के लिए तैयार नहीं हैं बल्कि वे तो यह कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं कहा है।

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का उत्तर देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब अपना भाषण प्रारंभ किया तभी विपक्ष ने टोका-टाकी और नारेबाजी शुरू कर दी जो पूरे भाषण के दौरान जारी रही। विपक्ष से यह अपेक्षा स्वाभाविक थी कि जब उसके सभी सदस्यों के विचार सत्ता पक्ष द्वारा सुने जा चुके थे तो विपक्ष को भी प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान सदन की गरिमा को बिना आंच पहुंचाए प्रधानमंत्री के विचार सुनने चाहिए थे लेकिन विपक्ष ने नारेबाजी और शोरगुल का सिलसिला इसलिए जारी रखा ताकि प्रधानमंत्री अपना भाषण पूरा नहीं कर पाएं। आखिरकार प्रधानमंत्री ने उसी शोरगुल में अपना भाषण पूरा किया उसके बाद सदन ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया। राज्य सभा में भी जब प्रधानमंत्री बहस का उत्तर दे रहे थे तब भी विपक्ष लगातार नारेबाजी और शोरगुल करता रहा और जब उसे यह आभास हुआ कि वह अपनी नारेबाजी और शोरगुल से प्रधानमंत्री के भाषण के प्रवाह को अवरुद्ध करने में असफल हो रहा है तब वह विपक्ष के सांसदों ने सदन से वाकआउट कर दिया। उसके बाद प्रधानमंत्री धाराप्रवाह बोलते रहे । प्रधानमंत्री का उत्तर समाप्त होने के बाद राज्य सभा ने भी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित कर दिया। विगत दिनों संसद के दोनों सदनों में सत्रावसान के पूर्व लगभग पूरे समय सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जो टकराव देखने को मिला उसमें भविष्य में कोई कमी आने की संभावना नहीं देती।

18 वीं लोकसभा में संख्या बल के हिसाब से और ताकतवर बनकर उभरा है और सत्ता पक्ष का संख्या बल गत लोकसभा की तुलना में कम हुआ है। संख्या बल में हुए इजाफे ने विपक्ष के जोश में भी इजाफा कर दिया है। उधर दूसरी ओर सत्ता पक्ष का संख्या बल भले ही कम हुआ हो लेकिन लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता संभालने के लिए मिले जनादेश ने एनडीए को उत्साह से भर दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में कुछ बड़े और चौंकाने वाले साहसिक फैसले लेकर विपक्ष को निस्तेज करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी । इसमें दो राय नहीं हो सकती कि मोदी सरकार के सामने तीसरे कार्यकाल में पहले से अधिक चुनौतियां होंगी और विपक्षी इंडिया गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सभी घटक दलों को एकजुट रखने की होगी।

नोट – लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।

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