Home Madhya Pradesh भारत की कोई भी समस्या विश्वव्यापी नहीं, लाइलाज नहीं : अश्विनी उपाध्याय

भारत की कोई भी समस्या विश्वव्यापी नहीं, लाइलाज नहीं : अश्विनी उपाध्याय

भोपाल : रविवार, जुलाई 28, 2024/ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ (पीआईएल मैन आफ इंडिया) अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत की समस्याएं विश्व व्यापी और लाइलाज नहीं हैं। इनका समाधान हो सकता है। इसके लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। जमाखोरी, रिश्वतखोरी, घुसपैठ, अतिक्रमण जैसी समस्याएं केवल भारत में ही हैं। उन्होंने चीन और दुबई का उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों में इस तरह की समस्याएं नहीं हैं, क्योंकि वहां के कानून कड़े हैं। भारत की समस्याएं अंग्रेजों के बनाए कानूनों से नहीं खत्म होगी। भारत में एक देश एक विधान जरूरी है। सबसे पहले हमें धर्म और पंथ के अंतर को समझना होगा। हमारे पढ़े-लिखे लोग भी यह नहीं जानते कि धर्म क्या है और पंथ क्या है। धर्म जोड़ता है और पंथ तोड़ता है। हिन्दू धर्म है और बाकी सब पंथ है।

अश्विनी उपाध्याय शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी और धर्म संस्कृति समिति द्वारा भू अतिक्रमण और समान नागरिक संहिता को लेकर राजधानी भोपाल में आयोजित एक दिवसीय परिसंवाद कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भू-अतिक्रमण की बात करते हुए कहा कि कई बार हम गलत बातों को जस्टिफाई करते हैं। कहा जाता है कि ये मजार या कब्रिस्तान अवैध है। इसका मतलब यह है कि कोई मजार वैध भी है। फिर अरब देशों में कोई मजार या पक्का कब्रिस्तान क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में पक्की मजार या कब्रिस्तान बनाना हराम है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में ऐसी कोई बीमारी नहीं, जिसकी कोई दवाई नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान नहीं, लेकिन हम केवल समस्याओं की बात करते हैं। भारत में समस्याजीवियों की बाढ़ आ गई है। हमारा संविधान संप्रभूता की बात करता है। समान नागरिक संहिता यानी आर्टिकल 44 को परिभाषित करता है, लेकिन मैं एक देश एक विधान यानी आर्टिकल 15 की बात करता हूं, जिसमें जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है। संविधान को यथारूप पढ़ने से स्पष्ट है कि समता, समानता, समरसता, समान अवसर और समान अधिकार भारतीय संविधान की आत्मा हैं। कुछ लोग ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का विरोध करते हैं. लेकिन सच्चाई तो यह है कि इसके लाभ के बारे में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है। समान नागरिक संहिता लागू होने से परिवर्तित हिन्दुओं को ही फायदा होगा।

उपाध्याय ने कहा कि भारत देवी-देवाताओं का देश है। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, गौतम बुद्ध, विवेकानंद समेत सभी संतों-महात्माओं ने भारत में ही जन्म लिया है। प्रायः किसी भी कार्यक्रम में हम कहते हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भाव हो और विश्व का कल्याण हो। इनमें सबसे महत्वपूर्ण अधर्म का नाश है। धर्म की जय करने से अधर्म का नाश नहीं होगा, बल्कि अधर्म का नाश होगा तो धर्म की जय होगी। लेकिन हमने अधर्म का नाश करना छोड़ दिया है। अर्धम का नाश करना हमारा काम नहीं है। किसी की हत्या होने पर हम जस्टिस फार कैम्पेन छेड़ देते हैं। हम एक-एक व्यक्ति के लिए जस्टिस-जस्टिस कर रहे हैं, लेकिन किसी को जस्टिस नहीं मिला। इसके लिए व्यवस्था में बदलाव करना होगा।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका, राजपालिका और खबरपालिका, ये चारों का है कि वे धर्म की जय करने के लिए काम करे। अधर्म का विनाश करने के लिए काम करे, प्राणियों में सद्भावना लाने और विश्व का कल्याण करने के लिए काम करे। जैसे अधर्म के नाश के बिना के धर्म की जय नहीं हो सकती, उसी तरह कठोर कानून के बिना भू-अतिक्रमण नहीं रुक सकता है। यह समाज का काम नहीं है भू-अतिक्रमण रोकना। शिक्षा में संस्कार हो और कानून का खौफ हो। जापान और सिंगापुर में शिक्षा में संस्कार है और कानून का खौफ है। भारत में इन देशों में इतना अंतर है कि वहां कभी सुना नहीं होगा कि वहां अवैध निर्माण हुआ होगा, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है। हमारे यहां शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने की चल रही है। अंग्रेजों के जमाने के कानूनों में बदलाव जरूरी है।

उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में लिखा है कि हम संप्रभु भारत बनाएंगे, लेकिन इस पर हमारी संसद और विधानसभाओं में चर्चा ही नहीं हुई कि संविधान कहता क्या है। इस देश में झूठों का इतना बोलबाला है कि जिन लोगों ने 75 साल से संविधान की धज्जियां उड़ाई है, संविधान के विरोध में काम कर रहे हैं, वे संविधान ले-लेकर घूम रहे हैं और जो संविधान बचाने के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें संविधान विरोधी घोषित कर रहे हैं। संप्रभु भारत का मतलब स्वतंत्र भारत अर्थात अपना भारत। शिक्षा, कानून व्यवस्था, राज व्यवस्था सब कुछ अपना होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत में धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए भारत में 300 योजनाएं चल रही हैं। भारत का हिन्दू सोचता है कि हिन्दू रहने से कोई फायदा नहीं है। धर्म परिवर्तन से फायदा है। हमारे टैक्स से पैसों और मंदिरों के पैसों से धर्मांतरण हो रहा है। भारत में मंदिरों-मठों की एक लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति पर सरकार का अधिकार है, लेकिन किसी मस्जिद या चर्च पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक अल्पसंख्यक आयोग खत्म नहीं होगा, तब तक धर्मांतरण -मतांतरण की समस्या खत्म नहीं होगी।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने कहा कि जब अंत:वृक्ष से बात प्रस्फुटित होती है तो मैं अपने को रोक नहीं सकता। मैं कहना चाहता हूं कि वक्फ बोर्ड के अधिकार सीमित किए जाएं। विधानसभा में विधेयक लाकर इसे सीमित अधिकार वाला बनाना चाहिए। राज्य शासन का एक सर्कुलर है, यह भाजपा की सरकार आने के बाद जारी हुआ है। जहां पर भी कब्र होगी, मजार होगी या अल्पसंख्यक समुदाय का कुछ हिस्सा होगा, वह रकबा नम्बर राजस्व रिकार्ड में चढ़ जाएगा। इसे रोकने की जरूरत है।

रघुनंदन शर्मा ने यह बात शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार और धर्म संस्कृति समिति द्वारा भू अतिक्रमण और समान नागरिक संहिता को लेकर राजधानी भोपाल में आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपने संबोधन में कही। उन्होंने मंदसौर जिले में एक खेत में बनी मजार का उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले में कलेक्टर से शिकायत करने पर कहा गया कि सिर्फ मजार एरिया की नाप में ही मजार होगी। इसके अलावा कोई जमीन मजार की नहीं होगी। कलेक्टर ने ऐसा करके भी दिखाया। अब ऐसे कलेक्टर नहीं होते हैं। शर्मा ने मुस्लिम संगठनों से जुड़े कई बोर्ड को भंग करने की भी आवश्यकता भी जताई।
देश भक्ति की गंगा कभी सूख नहीं सकती शर्मा ने कहा कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बहाने देश भक्ति की गंगा को रोकने की कोशिश की गई थी, लेकिन देश भक्ति की गंगा कभी सूख नहीं सकती। यह निरंतर प्रवाहमान है। कानून बदलते रहते हैं, राष्ट्र भक्ति कभी नहीं बदलती। मां के प्रति श्रद्धा कभी बदलती नहीं है। मां, मां होती है और वत्स, वत्स ही रहता है। भारतवासियों की भारत माता के प्रति भक्ति कभी खत्म नहीं हो सकती। पूर्व सांसद शर्मा ने हिन्दू-मुस्लिम आबादी का जिक्र करते हुए कहा कि एक षड़यंत्र हुआ। परिवार नियोजन के नाम पर जिसमें पहले हम दो हमारे दो कहा गया और फिर हम एक पर आ गए। दो को तीन करने की बजाय एक करके हिन्दू की आबादी घटाई गई। इसका उदाहरण देखना हो तो कश्मीर में जाकर देखो। यह षड़यंत्र आजादी के बाद से चला है। अब दूसरा षड़यंत्र जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी के नाम पर हो रही है। सनातन को मिटाने वाले यह षड़यंत्र कर रहे हैं। शर्मा ने कहा कि सनातन धर्म को बचाना है तो हर परिवार में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न होना ही चाहिए। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ (पीआईएल मैन आफ इंडिया) अश्विनी उपाध्याय थे, जबकि कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर विधायक भगवान दास सबनानी और विशिष्ट अतिथि के तौर पर राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ निवेदिता शर्मा मौजूद रहे।

विधायक भगवान दास सबनानी ने कहा कि 1 जुलाई को जब नए कानून की घोषणा हुई और इसे लागू किया गया तब इसको लेकर लोकसभा के अंदर जिस तरीके का वातावरण बनाने का प्रयास किया गया। 160 पुराना कानून जिसे दंड संहिता कहा जाता था लेकिन केवल शब्द से ज्यादा ऐसे कानून जिनकी आवश्यकता नहीं है, उसको समाप्त करने का काम केंद्र सरकार ने किया। विधायक सबनानी ने कहा कि पहले के समय में साइबर अपराध नहीं हुआ करते थे, लेकिन अब सीमा पर और समुद्र में बैठे लोग भी अपराध करते हैं।

नए कानून का विरोध सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल की सरकार ने किया। जहां छोटे-छोटे बच्चों से अपराध करवाने का काम चाहे जम्मू कश्मीर में बच्चों से पत्थर फेंकने का काम है, चाहे बच्चों को आगे करके पश्चिम बंगाल में वहां की व्यवस्था खराब करने का काम हो, जो लोग इनका उपयोग करते थे उनको भी दंड की सूची में लाकर यहां न्याय किया जा सके इसका प्रयास किया है। विधायक सबनानी ने आगे कहा कि फरियादी के साथ उसके परिजनों को भी न्याय मिलेगा ऐसे प्रावधान किए गए तो हम सबको ऐसे कानून का स्वागत करना चाहिए। वहीं समान नागरिकता कानून को लेकर उन्हेंने कहा कि आज समय आ गया है जब बाकी लोग भी मान गए हैं कि जब हमें समान नागरिक सहायता की ओर जाना चाहिए। भारत में वह समय आ गया है जब सबके अपने निजी कानून नहीं होना चाहिए, भारत में समान कानून संहिता होनी चाहिए।

राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ निवेदिता शर्मा ने राजधानी भोपाल में आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम में कहा कि भारत सरकार द्वारा तीन नए कानून लागू किए हैं। तीनों पुराने कानून हैं, जिनका कुछ हिस्सा हटाया गया है और इनका नाम बदला गया है। इनमें कुछ नया जोड़ा भी गया है। इनमें दंड की न्याय शब्द का इस्तेमाल कर भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य संहिता 2023 हो गए हैं। उन्होंने 2012 में आए माता-पिता भरण पोषण कानून का जिक्र करते हुए कहा कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी, यह सोचने की जरूरत है, लेकिन समाज कानूनों से नहीं, नैतिकता और संस्कारों से चलता है। कानूनों की शिक्षा देने की आवश्यकता है। डॉ निवेदिता शर्मा शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी और धर्म संस्कृति समिति द्वारा भू अतिक्रमण और समान नागरिक संहिता को लेकर राजधानी भोपाल में आयोजित एक दिवसीय परिसंवाद कार्यक्रम को बतौर विशिष्ट अतिथि संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि भू अतिक्रमण और समान नागरिक सहिता पर बात करने की आवश्यकता है। कानून की भारतीय प्राथमिकता क्या हो सकती है। हर किसी को इस देश में न्याय पाने का अधिकार है। अंग्रेजों के समय में हमें व्यवस्थित न्याय नहीं मिला, हम यह समझते हैं तो ऐसा नहीं है। क्या कोई किसी किसी महिला के साथ व्यभिचार करेगा तो उसको सजा मिलनी चाहिए। यह व्यवस्था प्राचीन समय से चली आ रही है।

उन्होंने अयोध्या के राजा सदर का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके राजकुमार का नाम असमंजस था। लोगों ने राजा से शिकायत करते हुए कहा कि राजकुमार असमंजस हमारे छोटे-छोटे बच्चों को उठाकर तेज जलधारा में फेंक देता था। इससे हमारे बच्चे चिल्लाते हैं और उसे मजा आता है। तब राजा उठे और उन्होंने अपने मंत्रिपरिषद को बुलाया और सभा के लिए उन्होंने कहा राजकुमार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा। जब उन्होंने अपना पक्ष रखा तुमने कहा माफ कर दीजिए, लेकिन क्या राजा का बेटा है तो उसे माफ कर देना चाहिए, लेकिन उस समय उसे राजद्रोह के नाते उसे देश से निकाल दिया। किसी की मृत्यु नहीं हुई थी, इसलिए उसे मृत्युदंड नहीं मिला। ऐसी न्याय व्यवस्था भारत में देखने को मिलती है।

उन्होंने कहा कि नई न्याय व्यवस्था कैसी होगी, शासन कैसा होगा, उसके गुण कैसे होंगे, यह सब कुछ कानूनों में है। मौर्य युग में न्याय व्यवस्था का पूरा वर्णन देखने को मिलता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी दो प्रकार का न्याय देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या को लोक माता कहा जाता है। क्योंकि आधुनिक भारत को आधुनिक भारत की बात कर रहे हैं तब देवी अहिल्या जिन्होंने 70 सालों तक शासन को चलाया और सुशासन कैसे स्थापित करते हैं, इसका उदाहरण पेश किया। समाज ने उन्हें स्वीकार किया। उनके समय में तीन तरह की न्याय प्रणाली हुआ करती थी। जब कोई पंचायत निर्णय के फैसले से संतुष्ट नहीं है जिला न्यायालय में अपील करता था फिर मंत्रिपरिषद की भूमिका एवं होती थी। लोक माता के समय कोई मंत्री परिषद से संतुष्ट नहीं होता था तो लोक माता के पास जाकर अपना पक्ष रख सकता था। कानून भारत में अंग्रेजों ने केवल अपने स्वार्थ के लिए कानून बनाए। उन्होंने इंडियन फारेस्ट एक्ट का उदाहरण दिया, जो 1987 में केवल टिंबर उत्पादन पर अपना होल्ड कर सके, इसके लिए लाया गया, जो आज भी नहीं बदला गया।

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