अश्वनी शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि शुरू हुए थे। जिसमें माता के भक्तों ने नवरात्रि के नौ दिनों भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना की नवरात्रि व्रत का समापन नवमी तिथि को होगा। लेकिन उससे पहले अष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा और हवन के साथ कन्या पूजन के साथ भंडारो का सिलसिला शुरू होगा।
बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य डॉ. सतीश सोनी के अनुसार श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के तृतीय स्कंध में लिखा है। कन्या पूजन और हवन के बिना नवरात्रि की पूजा संपन्न नहीं की जा सकती। इस बार नवरात्रि में अष्टमी तिथि 3 अक्टूबर शाम 4:39 तक रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि का प्रारंभ होगा। ऐसे में नवरात्रि अष्टमी हवन 3 अक्टूबर को ही किया जाएगा। शोभन योग 2 अक्टूबर शाम 5:14 से 3 अक्टूबर दोपहर 2:30 तक रहेगा। संधि पूजा का मुहूर्त 3 अक्टूबर शाम 4:14 से लेकर 5:02 तक होगा।
कार्य सिद्धि के लिए आयु अनुसार करें, कन्या पूजन
नवरात्रि के नौ दिनों में कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कन्याओं की उम्र 2 वर्ष से कम और 10 वर्ष से अधिक ना हो।
– 2 वर्ष की कन्याः 2 साल की कन्या को कुमारी कहा जाता है। इनके पूजन से सभी तरह के दुख और दरिद्रता का नाश होता है।
– 3 वर्ष की कन्याः 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है। भगवती त्रिमूर्ति के पूजन से धन लाभ होता है।
– 4 वर्ष की कन्याः 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी कहां गया है। देवी कल्याणी के पूजन से जीवन में सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
– 5 वर्ष की कन्याः 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी माना गया है। मां रोहिणी के पूजन करने से जातकों के घर परिवार से सभी तरह के रोग दूर होते हैं।
– 6 वर्ष की कन्याः 6 वर्ष की कन्या को कालका देवी का रूप माना जाता है। इनके पूजन से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है।
– 7 वर्ष की कन्याः 7 वर्ष की कन्या को चंडिका कहा गया है। इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और समृद्धि सभी तरह के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
– 8 साल की कन्याः 8 साल की कन्या को शाभभवी का स्वरूप कहा गया है। इनके पूजन से युद्ध, न्यायालय में विजय की प्राप्ति होती है। तथा यश मिलता है।
– 9 वर्ष की कन्याः 9 वर्ष की कन्या को साक्षात दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। इनके पूजन से समस्त तरह की विघ्न बाधाएं दूर होती हैं। तथा शत्रुओं का नाश होता।