मध्यप्रदेश की रोमांचक विकास यात्रा के बारे में विस्तार से जानते हुए 1911 की जनगणना रिपोर्ट के पन्ने पलटना भी रोमांचक अनुभव से कम नहीं। यह रिपोर्ट आईसीएस जे.सी. मार्टिन ने तैयार की थी। वे सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार के सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ सेंसस ऑपरेशंस थे। वर्ष 1901 से 1910 के दशक में बेरार प्रोविंस को सेंट्रल प्रोविंस में शामिल किया गया। इस प्रकार सेंट्रल प्रोविंस के 8 ब्रिटिश जिले बेरार के चार जिले और 15 सामंती राज्यों को मिलाकर जनगणना होनी थी। यह पांचवीं जनगणना थी जो 10 मार्च 1911 में शुरू हुई। कुल 91,770 गणनाकार, 8,422 सुपरवाइजर और 675 चार्ज सुपरिंटेंडेंट मिलाकर एक लाख से ज्यादा का स्टाफ जनगणना के लिए था। यह क्षेत्र एक लाख 31 हजार वर्ग मील था। जनसंख्या 160 लाख थी। यह ब्रिटिश इंडिया के कुल क्षेत्रफल का 7.3% था, जो जापान के क्षेत्रफल से थोड़ा काम। आज का मध्यप्रदेश जो पहले मध्य भारत प्रांत था वह इसी सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार का भाग था।
वर्ष 1911 की सेंसस रिपोर्ट के साक्षरता संबंधित 8वें चैप्टर में कुछ बेहद दिलचस्प आंकड़े मिलते हैं। इसमें अखबारों की संख्या और प्रसार संख्या के आंकड़े भी प्रकाशित किए गए। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती दैनिक, मासिक, पाक्षिक और साप्ताहिक पत्रों की संख्या 27 थी और प्रसार संख्या 10,627 थी। इसी प्रकार संस्कृत मारवाड़ी, गुजराती, तमिल, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी की कुल 640 किताबें इस दौरान प्रकाशित हुई थी। सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 444 थी, जिसमें 53,308 बच्चे पढ़ते थे। प्राथमिक स्कूल 3865 थे, जिसमें 2 लाख 77 हजार 620 बच्चे पढ़ते थे। प्रत्येक 30 व्यक्ति में से एक साक्षर था। अंग्रेजी साक्षरता का अलग से आकलन किया गया था। प्रत्येक 10 हजार की जनसंख्या में 55 पुरुष और 5 महिलाएं अंग्रेजी में साक्षर थीं। नागपुर, जबलपुर, सागर और अमरावती में अंग्रेजी पढ़ने-बोलने वाले ज्यादा थे क्योंकि इन्हीं जगहों पर अंग्रेजी अफसरों की पोस्टिंग होती थी और वे अंग्रेजी में लोगों से बात करते थे। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि 1901 से 1910 के बीच 562 मील रेलवे रूट था। रेलवे में सबसे ज्यादा 36 हजार 367 लोगों को रोजगार मिला था। दूसरे नंबर पर सिंचाई विभाग था, जिसमें 18 हजार 473 को नौकरियां मिली थी।
स्वतन्त्रता मिलने तक इस विशाल क्षेत्र का विकास आगे बढ़ता रहा। बाद में भाषा, सांस्कृतिक आधार पर और प्रशासनिक प्रबंधन की दृष्टि से अलग राज्य बनाने की मांग शुरू हुई। देश की एकता बनाए रखते हुए क्षेत्रीय संतुलन की बातें मुखर हुईं। परिणामस्वरुप 29 दिसंबर 1953 को राज्यों के पुनर्गठन आयोग बनाया गया। जस्टिस सैयद फैसल अली अध्यक्ष और हृदय नाथ कुंजूरू, कोवल्लम माधव पणिक्कर इसके सदस्य थे। आयोग ने 30 सितंबर 1955 को सिफारिशों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें मुख्य रूप से जिन बिंदुओं पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाना था, उसमें परिवर्तन के परिणाम, भारत की एकता और सुरक्षा, भाषा और संस्कृति, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, राष्ट्रीय विकास की योजना, राज्यों के आकार जैसे बिंदुओं का ध्यान रखा गया था। आयोग की अनुशंसाओं को अमल में लाने के लिए संविधान में संशोधन अनिवार्य प्रक्रिया थी। फलस्वरूप लोकसभा में 18 अप्रैल 1956 को संविधान नवम संशोधन विधेयक पेश हुआ। इसे अक्टूबर में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 1 नवंबर 1956 को यह पूर्ण रूप से अधिनियम बना। साथ ही सेंट्रल प्रोविंस एंड बेरार में शामिल मराठी भाषी जिले महाराष्ट्र में शामिल हो गए और मध्यप्रदेश में 43 जिले बचे। बाद में दो जिलों का क्षेत्रफल के अनुसार विभाजन हुआ और 45 जिलों का मध्यप्रदेश बना।
जनसंख्या वृद्धि, वैश्विक विकास के मानदंडों के साथ कदमताल करते हुए मध्यप्रदेश का विकास निरंतर होता रहा। वर्ष 2000 में जन-आकांक्षाओं के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य बना। मानव संसाधन, परिसंपत्तियों और प्राकृतिक संसाधनों का स्वाभाविक रूप से बटवारा हुआ । विकास की गति रुकी नहीं।
विकास का आकलन करने के परंपरागत तरीकों, मापदंडों के अलावा भी कई नए क्षेत्रों में मध्यप्रदेश नई उपलब्धियों और नए कीर्तिमान के साथ आगे बढ़ रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी जैसे नए क्षेत्रों में मध्यप्रदेश गतिशील है। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ जिस प्रकार कदमताल कर रहा है वह सराहनीय है। प्रशासनिक नवाचारों और विकास प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी जनित नवाचारी हस्तक्षेप से आम नागरिकों का जीवन आसान हुआ है।
वर्ष 1956, वर्ष 2000 और वर्तमान समय के मध्यप्रदेश में बड़ा परिवर्तन साफ दिखता है। शहरों और गांवों के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन हुआ है। सूचना क्रांति ने जीवन के हर आयाम को छुआ है। अधोसंरचनात्मक विकास से सामाजिक बदलाव आया है। जनसंख्या की निरंतर वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां बने रहने के बावजूद विकास की बाधाएं समाप्त हो रही हैं। प्रदेश के गठन के बाद 1961 की जनगणना 323.7 लाख थी।
कुछ आधारपभूत आंकड़ों से मध्यप्रदेश की विकास यात्रा और ज्यादा रोमांचक हो जाती है। अर्थव्यवस्था तेजी से बढी है। वर्ष 2003 में जीडीपी 71,594 करोड़ थी जो अब बढ़कर 13,63,327 करोड़ हो गई है। प्रति व्यक्ति आय वर्ष 1956 में मात्र 261 रूपए, 2003 में 11,718 करोड़ और वर्तमान में 1,42,565 करोड़ है।
कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव हुआ है। इसका कारण सिंचाई और बिजली की भरपूर उपलब्धता है। किसान-मित्र नीतियों से खेती आधारित अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत हुई। खेती से जुड़े अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अब सामान्य खेती से आगे बढ़कर कृषि उद्यमिता पर मध्यप्रदेश ने कदम रख रहा है। कृषि क्षेत्र में निर्यात बढ़ा है। मध्यप्रदेश का गेहूं, चावल, दालें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जा रही हैं।
एक अन्य क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन हुआ है वह राजस्व संग्रह का क्षेत्र। सरकार और व्यापारिक समुदाय के परस्पर सहयोग एवं विश्वास के रिश्तों से स्वप्रेरित राजस्व अदा करने की संस्कृति को बढ़ावा मिला है। मध्यप्रदेश जीएसटी संग्रहण में देश में पहले पांच राज्यों में है। यह राजस्व सरप्लस राज्य बन गया है। बिजली संकट से जूझने के बाद मध्य प्रदेश पावर सरप्लस राज्य है। नवकरणीय ऊर्जा जैसे नए क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
प्रदेश के विभिन्न भूभाग में समान रूप से औद्योगिक निवेश एवं विकास करने के उद्देश्य को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने रीजनल इंडस्ट्री कांक्लेव की श्रृंखला की शुरुआत की। अब तक उज्जैन , जबलपुर, ग्वालियर, सागर और रीवा में हो चुकी है। इसके साथ ही निवेश आमंत्रण के लिए मुंबई ,बेंगलुरु, कोयंबटूर, कोलकाता में रोड शो किए। फलस्वरूप मध्यप्रदेश को 2,76, 000 करोड रुपए के निवेश प्रस्ताव मिले। इसे प्रदेश में तीन लाख 98 हजार लोगों को रोजगार मिलने की संभावना बनेगी।
मध्यप्रदेश की मजबूत होती आर्थिक अधोसरंचना के साथ अब मध्यप्रदेश अपनी विकास की गति को और तेज करने के लिए तैयार है। सभी राज्यों और विदेशों से संपर्क निरंतर मजबूत हो रहा है। हाल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा रीवा एयरपोर्ट के शुभारंभ के साथ प्रदेश में छह एयरपोर्ट हो गए हैं।
मध्यप्रदेश के गठन के समय सड़कों की लंबाई 28.1 हजार किलोमीटर थी। आज 71,379 किमी हो चुकी है। रेल रूट 5188 किमी हो गया है।
चिकित्सा सेवाओं का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। राज्य के गठन के समय एलोपैथिक चिकित्सालय और औषधालयों की संख्या 556 तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की संख्या मात्र 108 थी। वर्ष 1956 में हॉस्पिटल में बेड की संख्या 10.2 हजार थी जो अब बढकर 45,000 से ज्यादा हो गई। .वर्ष 1956 में प्राथमिक शालाओं की संख्या 22.8 हजार थी जो अब बढ़कर 79,215 हो गई है। माध्यमिक शालाओं की संख्या 1.6 हजार से बढ़कर 30,184 हो गई है। उच्चतर माध्यमिक शालाओं की संख्या 414 से बढ़कर 4,868 हो गई है। वर्ष 1956 में प्रति व्यक्ति विद्युत उपभोक्ता 5 किलोवाट प्रति घंटे था। अब पावर सरप्लस राज्य है। आज 1184 किलोवाट प्रति व्यक्ति प्रति घंटे है।
कपड़ा सीमेंट और शक्कर मुख्य रूप से कारखाने थे। आज विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विस्तार हुआ है जिनमें खाद्य प्रसंस्करण और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं आधार आईटी उद्योग शामिल है। इन आधारभूत आंकड़ों से मध्य प्रदेश की एक रोमांचक विकास यात्रा की झलक मिलती है। आज जब भारत विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने जा रहा है तब मध्यप्रदेश भी अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने में खुद को तैयार कर रहा है।