प्रदेश में भोपाल की प्रजनन दर सबसे कम, मप्र के प्रमुख शहरों में गिरी प्रजनन दर

भारत की घटती प्रजनन दर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत द्वारा चिंता जताए जाने के बाद देशभर में यह मुद्दा बन गया है। जनसांख्यिकी के नियमों के मुताबिक जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए। भागवत के अनुसार आधुनिक जनसंख्या विज्ञान के अनुसार जब किसी समाज की संख्या वृद्धि (प्रजनन दर) 2.1 से कम हो जाती है तो वह समाज संसार से विलुप्त हो जाता है। यदि हम 2.1 जनसंख्या वृद्धि दर पर विचार करें, तो हमें दो से अधिक बच्चों की आवश्यकता है। तीन तो होने ही चाहिए। जनसंख्या विज्ञान यही कहता है। भागवत ने कहा कि समाज के जीवित रहने के लिए संख्याएं महत्वपूर्ण हैं। इन मापदंड़ों पर आकलन किया जाए तो मप्र के प्रमुख शहरों में प्रजनन दर गिरी है। प्रदेश में भोपाल की प्रजनन दर सबसे कम है।
संघ प्रमुख के बयान के परिप्रेक्ष्य में यदि मप्र की स्थिति देखी जाए तो यहां भी प्रजनन दर वर्ष 2001 से लगातार कम हो रही है। जानकारी के अनुसार भोपाल की प्रजनन दर पिछले एक दशक से 2 पर स्थिर है। 2011-12 में भोपाल की प्रजनन दर 2.1 थी। एनएचएम के अधिकारियों के अनुसार शहरी आबादी का प्रतिशत ज्यादा होने के कारण यहां परिवार नियोजन कार्यक्रम ज्यादा सफल साबित हुआ है। दूसरी तरफ प्रजनन दर के मामले में मप्र की हालत बहुत खराब है। प्रदेश की टीएफआर 2.8 है जो देश(2.3) की तुलना में 0.5 पॉइंट ज्यादा है। इस प्रकार ज्यादा टीएफआर के मामले में हम बिहार(3.3), उत्तर प्रदेश(3.1) के बाद तीसरे नंबर पर है। बीते तीन साल में प्रदेश की टीएफआर में एक पॉइंट का भी बदलाव नहीं आया है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में बीते पांच साल से टीएफआर को 2.1 पर लाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।
जहां साक्षरता कम वहां जनसंख्या दर ज्यादा
नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (एनएफएचएस-3) 2011 के आधार पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुस्वर, मप्र में प्रजनन दर वर्ष 2001 में 3.86 थी, जो वर्ष 2011 में 3 रह गई। यह आकड़े अभी भले ही संतोषजनक लगें, परंतु प्रदेश के प्रमुख शहरों की बात की जाए तो आकड़े चिंता पैदा करते हैं, क्योंकि राजधानी भोपाल में टीएफआर राष्ट्रीय मानक 2.1 से भी कम केवल 2 है, जबकि ग्वालियर की 2.1, इंदौर की 2.2 और जबलपुर की 2.4 बताई गई है। इसके पीछे इन शहरों में लोगों का अधिक शिक्षित होना और परिवार नियोजन पर अधिक ध्यान देना माना जा रहा है। प्रदेश के छोटे जिलों शिवपुरी-श्योपुर और पन्ना आदि में यह चार से अधिक है। प्रदेश की कुल प्रजनन दर का आंकड़ा तीन के आसपास रहा है। महानगरों में प्रजनन दर और कम हो सकती है, क्योंकि एनएफएस-5 (2019-21) की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश को प्रजनन दर केवल 2 ही बताई गई है।
प्रजनन दर कम होने से नुकसान
देश-प्रदेश व जिलों में युवाओं की संख्या कम होगी, बुजुर्ग आबादी बढ़ेगी। कामकाज करने वाली आबादी के कम होने से आर्थिक व्वस्था कमजोर होगी। सरकार पर स्वास्थ्य व पैशन के भुगतान का बोझ बढ़ेगा। कुछ समय बाद देश से कई सामाजिक वर्ग कम हो सकते हैं। कुछ समय बाद जनसंख्या कम होने लगेगी। लिंगानुपात में भी अंतर बढ़ जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार हमारा देश व प्रदेश विविध भौगोलिक क्षेत्र वाला है। यहां पहले से ही लिंगानुपात में अंतर है। बालिकाओं व महिलाओं की संख्या कम है। प्रजनन दर कम होने से इनकी संख्या और अधिक कम हो जाएगी। इससे भी सामाजिक असमानता बढ़ जाएगी। देश में प्रजनन दर कम होने के कारण की बात है तो वह कुछ वर्गों में अधिक कम हो रही है। कुछ की प्रजनन दर पहले से भी अधिक है।
प्रजनन दर में गिरावट का असर
प्रजनन दर में लगातार हो रही गिरावट का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव हो सकते हैं। कम जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय बढ़ सकती है, क्योंकि सीमित संसाधनों को कम लोगों में बांटना होगा। कम बच्चों के होने से परिवार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी संभव है। कम जनसंख्या का मतलब कम संसाधनों का उपयोग होगा, जिससे पर्यावरण पर दबाव कम होगा। हालांकि इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं जिसकी तरफ मोहन भागवत ने इशारा किया है। कम जन्म दर के कारण बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर दबाव बढ़ सकता है। कम जन्म दर के कारण भविष्य में कार्यबल में कमी आ सकती है, जिससे उत्पादकता कम हो सकती है। लंबे समय में कार्यबल में कमी आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। पारंपरिक परिवार संरचना में बदलाव और सामाजिक मूल्यों में बदलाव हो सकते हैं। किसी विशेष समुदाय के सामने विलुप्त होने का खतरा भी आ सकता है।
कई देशों में कम हो रहा है प्रजनन दर
ईरान, यूनाइटेड किंगडम, चीन जैसे देशों में भी प्रजनन दर में तेज गिरावट हुई। जापान में सबसे कम प्रजनन दर देखने को मिल रहा है। ताइवान,इटली,स्पेन,सिंगापुर में भी भारी गिरावट हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से भी इसे बढ़ावा दिया गया था। ईरान में प्रजनन दर प्रति महिला 6 से अधिक बच्चों से घटकर प्रति महिला 3 से कम बच्चों तक पहुंचने में केवल 10 साल लगाया। चीन में यह बदलाव 11 साल में आए। भारत में भी साल 2000 के बाद जन्म दर में भारी गिरावट देखने को मिली। अगर इन देशों के आर्थिक विकास को देखेंगे तो जनसंख्या दर में गिरावट के साथ ही भारत और चीन जैसे देश ने तीव्र आर्थिक विकास किया। हालांकि जानकारों का हमेशा से मानना रहा है कि तीव्र गिरावट का असर 2-3 दशक के बाद उत्पादकता पर देखने को मिल सकती है।

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