इंदौर की ऐतिहासिक ‘गेर’
परम्परा और महत्व
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में मनाए जाने वाले रंगपंचमी उत्सव का एक प्रमुख आकर्षण है। यह परंपरा लगभग 300 वर्षों से चली आ रही है और इंदौर की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है।
इतिहास और परंपरा:
‘गेर’ का आयोजन रंगपंचमी के अवसर पर होता है, जो होली के पांचवें दिन मनाई जाती है। इस दिन इंदौर के राजवाड़ा चौक से भव्य जुलूस निकलता है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। यह जुलूस शहर के विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए रंग और गुलाल की बौछार के साथ मनाया जाता है, जिसमें पारंपरिक संगीत, नृत्य और ढोल-नगाड़ों की धुन पर लोग झूमते हैं।
आधुनिक समय में ‘गेर’:
समय के साथ, ‘गेर’ ने अपनी भव्यता और आकर्षण को और बढ़ाया है। अब यह न केवल स्थानीय निवासियों के लिए, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुकी है। हर साल इसमें नए-नए बदलाव और नवाचार देखने को मिलते हैं, जिससे इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है।
प्रशासनिक तैयारियाँ:
‘गेर’ के सफल आयोजन के लिए प्रशासन द्वारा विशेष तैयारियाँ की जाती हैं। नगर निगम और पुलिस विभाग मिलकर सुरक्षा, सफाई और यातायात प्रबंधन का विशेष ध्यान रखते हैं। महापौर पुष्यमित्र भार्गव के नेतृत्व में अधिकारियों की बैठकें आयोजित की जाती हैं, जिसमें ‘गेर’ मार्ग का निरीक्षण और आवश्यक व्यवस्थाओं की समीक्षा की जाती है।
सांस्कृतिक महत्व:
‘गेर’ इंदौर की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह उत्सव समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाता है और सामूहिक उत्साह और आनंद का वातावरण बनाता है। इसमें शामिल होने वाले लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर उत्सव का आनंद लेते हैं, जिससे इंदौर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है।
उदाहरण
इंदौर की ऐतिहासिक ‘गेर’ न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। लगभग 300 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत और आकर्षक है, जितनी पहले थी। यह उत्सव इंदौर की जीवंतता, समृद्ध संस्कृति और सामूहिक भावना को दर्शाता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।