रुद्राक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है, इन बीमारियों से करता है बचाव
भारतीय संस्कृति के सांस्कृतिक प्रतीकों में रुद्राक्ष एक विशिष्ट स्थान रखता है, जो इसकी धार्मिक एवं आध्यात्मिक आस्था का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसका मुख्य कारण है रुद्र एवं अक्ष अर्थात भगवान शिव के आँसुओं के रूप में इसकी पहचान। माना जाता है कि जब भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त त्रिपुरासुर सृष्टि के लिए खतरा बन गया तो उसका संहार करने के लिए शिव ने रौद्र रूप धारण किया और तब उनकी आंखों से निकले आंसू धरती पर गिरे तथा उन्होंने रुद्राक्ष का रूप धारण किया। अतः इसे भगवान शंकर के प्रतीक के रूप में माना जाता है, जिसे माला से लेकर कलावा, कवच, मुकुट और न जाने कितने रूपों में धारण किया जाता है।
हिंदू धर्म में विशेष रूप से शिव व शक्ति-उपासना में इसका विशेष महत्व रहता है व इसकी माला से जप किया जाता है। इसका पौधा प्रमुखतः हिमालयी क्षेत्रों में 6000 से 9000 फीट की ऊंचाइयों में पाया जाता है। भारत सहित नेपाल के उच्च क्षेत्रों में यह बहुतायत में पाया जाता है। भारत में रुद्राक्ष उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, असम जैसे हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है, इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के मैसूर, नीलगिरी और कर्नाटक में भी रुद्राक्ष के पौधे मिलते हैं।