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जन्मकुंडली में अकाल मृत्यु योग से कैसे करें बचाव

जन्मकुंडली में अकाल मृत्यु योग से कैसे करें बचाव

जन्म एवं मृत्यु संपूर्ण ब्रह्मांड के दो सबसे बड़े सच हैं। जन्म लेने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु तय है। जन्म एवं मृत्यु के बीच वाले काल खंड को ही जीवन कहा जाता है। मृत्यु से एक दिन सभी का सामना होना है। आपको इससे कोई नहीं बचा सकता। इस सच से किनारा भी नहीं किया जा सकता। यह सृष्टि का नियम है जिससे कोई अलग नहीं है। लेकिन कई बार कुछ लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते है, जिसके कारण उनके सभी परिजनों का इस बात पर यकीन कर पाना बेहद मुश्किल होता है।

ऐसा कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति की कम आयु में मौत हो जाती हैं, तो उसे अकाल मृत्यु कहा जाता है। वहीं, कुछ जानकारों का मत है कि कुछ लोगों की जन्म कुंडली में अल्पायु लिखी होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है। इसके लिए आपको ज्योतिष की मदद लेनी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के उपायों से कैसे अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस धरती पर रहकर अच्छे कर्म करता है, तो उसे मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। वह जन्म-जन्मांतर के चक्र से भी छुटकारा पा लेता है। साथ ही किसी भी जातक की जन्म कुंडली को देखकर उस जातक के रोग एवं उसकी मृत्यु के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं उस जातक की मृत्यु किस रोग से होगी। इस बात का अंदाजा भी ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से लगाया जा सकता है। आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में छठा भाव रोग तथा आठवां भाव मृत्यु और बारहवें भाव शारीरिक व्यय व पीड़ा का भाव माना जाता है।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के लग्न में मंगल हो और उस पर सूर्य या शनि की दृष्टि होती है, तो किसी दुर्घटना में मृत्यु होने की आशंका अधिक रहती है।

 

2.यदि राहु और मंगल ग्रह की युति अथवा दोनों का समसप्तक होकर एक-दूसरे को देखना भी जातक की कुंडली में दुर्घटना से अकाल मृत्यु होने की संभावना होती है।

 

3.जन्म कुंडली के छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह से युक्त होकर छठे या आठवें भाव में होता है, तो दुर्घटना में मृत्यु होने का भय बना रहता है।

ज्योतिष के अनुसार लग्न भाव, दूसरे भाव तथा बारहवें भाव में अशुभ ग्रह की स्थिति हत्या का कारण होती है।

 

5.दसवे भाव की नवांश राशि का स्वामी राहु अथवा केतु के साथ स्थित होता है, तो जातक की मृत्यु अस्वाभाविक होती है।

 

6.लग्नेश तथा मंगल की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में होता है, तो जातक की मृत्यु शस्त्र वार से हो सकती है।

 

7.यदि मंगल दूसरे, सातवें या आठवें भाव में हो और उस पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि होती है, तो जातक की मौत आग से होने की संभावना होती हैं |

यदि किसी जातक की कुंडली में अकाल मृत्यु का योग होता है, तो उस जातक को भगवान शिव की पूजा करनी चाह‍िए। शिव जी की पूजा करने से अकाल मृत्यु योग से जातक को छुटकारा मिलता है। वहीं, अकाल मृत्यु का भय हो, तो जातक को जल में तिल और शहद मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।

इसी के साथ आपको महामृत्युंजय मंत्र और ओम नम: शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए। वहीं जातक को पूरी आस्था और श्रद्धा से सभी उपाय करने चाहिए। अन्यथा इस उपाय का कोई फल जातक को नहीं म‍िलेंगा। यदि किसी व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय होता है, तो उसको मंगलवार और शनिवार को काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी पका लेना चाहिए। उसके बाद गुड़ और तेल में वह रोटी म‍िला लें, फ‍िर जिस भी जातक की अकाल मृत्यु की आशंका हो उसके सिर से सात बार उस रोटी को उतारें।

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