दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को सांडों को वश में करने के पारंपरिक खेल ‘जल्लीकट्टू’ से संबंधित कानून को न्याय संगत बताते हुए इससे संबंधित तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कानून की वैधता को गुरुवार को बरकरार रखा।न्यायमूर्ति के एम जोसेफ, और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की संविधान पीठ ने तमिलनाडु के साथ इस प्रकार के पारंपरिक खेल से संबंधित महाराष्ट्र और कर्नाटक के कानूनों में पर भी अपनी मुहर लगाई।शीर्ष अदालत ने कहा कि जल्लीकट्टू पिछले कुछ सदियों से राज्य में चल रहा है और राज्य सरकार द्वारा पारित कानून में जानवरों के प्रति क्रूरता (यदि कोई हो) का ध्यान रखा गया है।न्यायमूर्ति बोस ने फैसले का एक हिस्सा पढ़ते हुए कहा कि किसी राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा क्या है, इस पर निर्णय लेने के लिए विधायिका सबसे अच्छी संस्था है और इसे न्यायपालिका द्वारा तय नहीं किया जा सकता है।शीर्ष अदालत ने यह भी नोट किया कि तीन राज्यों द्वारा पारित संशोधन अधिनियमों को राष्ट्रपति की सहमति भी मिली थी और यह पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है।संविधान पीठ न्यायमूर्ति रस्तोगी, न्यायमूर्ति रॉय और न्यायमूर्ति रविकुमार ने भी घोषित किया कि राज्य के कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते हैं।न्यायमूर्ति जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने राज्य के कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली पशु अधिकार संस्था पेटा द्वारा दायर एक सहित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।पीठ ने कहा, “हम विधानों की योजना को बाधित नहीं करेंगे।”