दिल्ली 11 जून/ अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत वर्ष 2002 में एक भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों से हुई थी। अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून को मनाने के लिए एक लंबा सफर तय करना पड़ा है। श्री सत्यार्थी ने इस मुद्दे को लेकर विभिन्न देशों में एक सशक्त अभियान चलाया और आम जनता से लेकर राष्ट्राध्यक्ष राष्ट्रप्रमुखों, राजा – रानियों और महाराजा- महारानियों का समर्थन प्राप्त किया। करोड़ों बच्चों के शोषण के खिलाफ और उनके अधिकारों को लेकर आवाज उठाने के लिए वर्ष 2014 में प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
श्री सत्यार्थी ने बाल श्रम के बारे में दुनिया को जागरूक करने और उसे एक गंभीर अपराध के तौर पर स्वीकार करने को
लेकर वर्ष 1998 में ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’यानी वैश्विक जन जागरूकता यात्रा की शुरुआत की थी। यह यात्रा
17 जनवरी, 1998 को फिलीपींस के मनीला से शुरू हुई और छह जून, 1998 को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में
समाप्त हुई। करीब पांच महीने तक चली इस यात्रा में श्री सत्यार्थी के साथ 36 बच्चे भी थे ,जिन्होंने कभी बाल मजदूर के रूप में काम किया था। इस यात्रा को करीब डेढ़ करोड़ लोगों का व्यापक समर्थन भी प्राप्त हुआ। इस यात्रा की दो प्रमुख मांगें बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने और साल में एक विशेष दिन बाल मजदूरों को समर्पित करने की थी। यह यात्रा छह जून, 1998 को जब जेनेवा पहुंची तो उस समय संयुक्त राष्ट्र भवन में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन- आईएलओ का एक महत्वपूर्ण वार्षिक सम्मेलन चल रहा था। इस सम्मेलन में 150 से अधिक देशों के मंत्री और प्रतिनिधि सहित 2,000 से अधिक व्यक्ति मौजूद थे। इन सबके बीच जब संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के गलियारे इन बच्चों के नारों और मांगों से गूंज उठे। आईएलओ ने अपनी परंपरा को तोड़ते हुए इतिहास में पहली बार एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री सत्यार्थी और दो बच्चों को बाल श्रम, बाल दासता, बाल वेश्यावृत्ति और तस्करी के बारे में अपनी बात रखने का अवसर दिया। वैश्विक जन जागरूकता यात्रा के एक साल बाद यानी 17 जून, 1999 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए आईएलओ समझौता- 182 पारित किया गया। इसपर बहुत ही कम समय में संयुक्त राष्ट्र के सभी 187 देशों ने अपने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही बाल श्रम निषेध को लेकर एक विशेष दिन घोषित किए जाने की मांग को भी मान लिया गया। वर्ष 2002 में इसकी घोषणा की गई कि अब से हर साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाएगा। इससे पहले बाल श्रम रोकने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1986 में बाल श्रम(निषेध और विनियमन) अधिनियम लागू किया। इससे कालीन निर्माण, चूड़ी बनाने, पटाखा फैक्ट्री, सर्कस, ताला उद्योग, पीतल के बर्तन बनाने, खेती के काम, साड़ी कढ़ाई, ईंट भट्ठों और घरों काम में कम कर रहे बच्चों को बचाया गया। लेकिन अभी तक कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय कानून या ढांचा नहीं था,जो बच्चों से मजदूरी कराने, उनकी तस्करी और उन्हें वेश्यावृत्ति या दूसरे खतरनाक कामों में धकेलने से रोकता हो।