काम कर रही है इंसान में लगाई सूअर की किडनी, मेडिकल फील्ड में जगी नई उम्मीद

Pig's kidney is working in human

 

इंसान के शरीर में जानवरों के अंग लगाये जा सकें, इसके लिए मेडिकल साइंस में सालों से रिसर्च चल रहा है। अब इस मामले में नई उम्मीद जगी है। न्यूयॉर्क में एनवाईयू लैंगोन हेल्थ में हाल ही में एक आनुवंशिक रूप से संशोधित सृूअर की किडनी को एक ब्रेन डेड मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किया। ये तीस दिनों से अधिक समय से काफी अच्छे से काम कर रहा है। एनवाईयू लैंगोन हेल्थ के शोधकर्ताओं ने बताया कि ये किसी इंसान के शरीर में सूअर की किडनी के सबसे लंबे समय तक काम करने का उदाहरण है। एनवाईयू लैंगोन हेल्थ के सर्जनों ने इस सर्जरी को 14 जुलाई 2023 को किया था. उन्होंने बताया कि वे लोग सितंबर के मध्य तक इसकी मॉनिटरिंग करेंगे। ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन यानी मनुष्यों में जानवरों के अंगों के ट्रांसप्लांट की दिशा में इसे काफी महत्वपूर्ण सफलता मानी जा रही है।

कैसे हुआ प्रत्यारोपण?

एनवाईयू लैंगोन हेल्थ में डॉ. रॉबर्ट मोंटगोमरी और उनके सहयोगियों ने 57 वर्षीय मौरिस मिलर में सूअर की किडनी प्रत्यारोपित की। इन्हें ब्रेन ट्यूमर बायोप्सी की जटिलताओं के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। मिलर के परिवार ने इस प्रयोग को सहमति दे दी क्योंकि मस्तिष्क कैंसर की वजह से उसके अंग भी डोनेट नहीं किये जा सकते थे। रिसर्च की अवधि के दौरान उन्हें वेंटिलेटर और अन्य जीवन रक्षक उपायों पर रखा गया है। जो किडनी लगाई गई, वो विशेष रूप से पाले गए जेनेटिकली मोडिफाइड सूअर से आई थी, ताकि मानव शरीर उसकी किडनी को स्वीकार कर सके। रिसर्च के जुड़े लोगों ने बताया कि इससे पहले चार और मरीजों को सूअर की किडनी लगाई गई थी, लेकिन कोई भी 7 दिनों से ज्यादा नहीं टिक पाया।

किडनी ट्रांसप्लांट एक बड़ी समस्या

किडनी हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है और जीने के लिए किडनी का सही तरीके से काम करना आवश्यक है। नेशनल किडनी फाउंडेशन के अनुसार, अमेरिका में लगभग 4 करोड़ लोगों को किडनी की बीमारी है और ट्रांसप्लांट के इंतजार में हर दिन 17 लोग मर जाते हैं। इसका ट्रांसप्लांट भी आसान नहीं है क्योंकि परिवार के करीबी सदस्यों की किडनी ही मैच होती है। कई बार शरीर दूसरे की किडनी स्वीकार नहीं करता, या इसमें इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है। खास बात ये है कि सूअर से प्राप्त ये किडनी 100 सालों तक सामान्य ढंग से काम कर सकती है। इस प्रयोग से सफल होने पर अंग-प्रत्यारोपण के क्षेत्र में काफी उम्मीद बन सकती है।

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