देश भर में साइबर ठगी, खासकर डिजिटल अरेस्ट के जरिये लाखों-करोड़ों रुपये शातिर लोग ठग रहे हैं। ठग पुलिस से बचने के लिए निजी बैंकों में फर्जी फर्मों के नाम पर खोले गए करंट अकाउंट (चालू खाता) में रुपये जमा करवाते हैं। वे ऐसी बैंकें चुन रहे हैं, जिन्हें शुरू हुए अधिक समय नहीं हुआ है। करंट अकाउंट से आगे जिन खातों में रुपये भेजे जा रहे हैं, वे खाते ठगों ने किराये पर ले रखे होते हैं। ठगी का धन हड़पने और पुलिस को उलझाने के लिए एक बड़ा नेटवर्क देश में काम कर रहा है।
अब पुलिस बैंक अधिकारियों के साथ इस संबंध में बैठक करने जा रही है। हाल ही में ठगी की बड़ी घटनाओं को लेकर साइबर क्राइम विंग ने अध्ययन किया है। इसमें यही स्थापित हुआ है कि ठगी का बहुत बड़ा हिस्सा निजी बैंकों के खातों में जमा हुआ है।
इस तरह होती है रुपयों की हेराफेरी
साइबर क्राइम विंग ने ठगी के मामलों में अब तक कई आरोपियों को पकड़ा है। पड़ताल में सामने आया कि रुपये पीडि़त से ही निजी बैंकों के करंट अकाउंट में जमा करवाए गए। ये खाते अलग-अलग राज्यों में थे। जिन फर्मों के नाम पर खाते थे, वे जांच में फर्जी पाई गईं। पीडि़त ने एक या दो खातों में रुपये जमा करवाए। आगे जिन खातों में रकम ट्रांसफर हुई, वे मजदूरों, नौकरीपेशा, छात्रों, सामान्य दुकानदारों और ग्रामीणों के नाम पर निकले। इनके खाते भी निजी बैंकों में ही ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपियों ने खुलवाए थे। हर लेनदेन पर कमीशन तय किया और खातों में ठगी की रकम मंगाई। इन खातों को ऑपरेट ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपी ही करते हैं।
निजी बैंकों पर नजर इसलिए
साइबर क्राइम विंग ने इस साल डिजिटल अरेस्ट सहित अन्य साइबर ठगी के मामलों में कई आरोपियों को पकड़ा गया। इसमें सरगना, एजेंट और किराये पर खाते उपलब्ध कराने वाले भी शामिल हैं। आरोपियों ने बताया कि निजी बैंकों के कर्मचारियों को लक्ष्य मिलते हैं। यहां अधिक संख्या में खाते नहीं होते, कई बैंकों की तो पूरे शहर में ही एक या दो शाखाएं होती हैं। इनमें खाता खुलवाने में अधिक औपचारिकताएं नहीं हैं। ऑनलाइन खाता भी अपेक्षाकृत आसानी से खुल जाता है। कई ऐसी औपचारिकताएं हैं, जिनसे ठग बचते हैं।