प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज शाम करीब 6:30 बजे ताज पैलेस होटल, नई दिल्ली में तीसरे कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन में भाग लेंगे। इस अवसर पर वे उपस्थित जनसमूह को संबोधित भी करेंगे। भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के साथ साझेदारी में आर्थिक विकास संस्थान, 4-6 अक्टूबर, 2024 को नई दिल्ली में कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन (केईसी) के तीसरे संस्करण की मेजबानी करेगा।
इस सम्मेलन में करीब 150 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शिक्षाविद और नीति निर्माता भारतीय अर्थव्यवस्था और वैश्विक दक्षिण की अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाले कुछ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक साथ आएंगे।
सम्मेलन में वक्ताओं में शामिल हैं, केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्री, निर्मला सीतारमण (उद्घाटन सत्र); विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर (समापन सत्र); भूटान के वित्त मंत्री ल्योनपो लेके दोरजी, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा, एमेरिटस के प्रेसिडेंट मसूद अहमद, सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट, यूएसए; वेरा सोंगवे, अध्यक्ष, लिक्विडिटी एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी: उच्च स्तरीय पैनल की उपा-अध्यक्ष, फाइनेंस फॉर क्लाइमेट एक्शन, यूएसए; सर सुमा चक्रवर्ती, बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के अध्यक्ष, ओडीआई ग्लोबल, यूके; डॉ जैदी सत्तार, संस्थापक अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी, पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीआरआई), बांग्लादेश; ओईसीडी में फ्रांसीसी स्थायी प्रतिनिधि और फ्रांस के पूर्व मंत्री, जस्टिन यिफू लिन, डीन, इंस्टीट्यूट ऑफ न्यू स्ट्रक्चरल इकोनॉमिक्स, पिकिंग यूनिवर्सिटी, चीन; एरिक बर्गलोफ, मुख्य अर्थशास्त्री, एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआईआईबी), चीन; प्रोफेसर हेइज़ो ताकेनाका, पूर्व आर्थिक और राजकोषीय नीति मंत्री; प्रोफेसर एमेरिटस, कीओ विश्वविद्यालय, जापान; एडुआर्डो पेड्रोसा, महासचिव, प्रशांत आर्थिक सहयोग परिषद, सिंगापुर; सुमन बेरी, उपाध्यक्ष, नीति आयोग, भारत; डॉ अरविंद पनगढ़िया, अध्यक्ष, भारत के 16वें वित्त आयोग; गीता विरजावन, अध्यक्ष, एंकोरा समूह; पूर्व व्यापार मंत्री, इंडोनेशिया; प्रोफेसर रॉबर्ट लॉरेंस, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश, हार्वर्ड केनेडी स्कूल, यूएसए; मार्टिन रेजर, दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष, वर्ल्ड बैंक, यूएसए; प्रोफेसर जीन पियरे लैंडौ, एसोसिएट प्रोफेसर और शोधकर्ता, अर्थशास्त्र विभाग, साइंसेज पो (पेरिस), और हार्वर्ड केनेडी स्कूल, फ्रांस में रिसर्च फेलो; भारत सरकार के सचिव; और कई अन्य।
पिछले कुछ वर्षों में, विश्व अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व झटकों से गुजरी है। सदी की सबसे बड़ी महामारी का सामना करने के बाद, लगातार सैन्य संघर्षों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है जिससे ऊर्जा और खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई है। सामरिक बाधाएं सामने आई हैं और उससे हम फिर उबरने लगे हैं। अति-वैश्वीकरण से दुनिया “धीमी-संतुलन” में उतर गई है। राजनीतिक और राजकोषीय पुनर्संरेखण ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और पूंजी प्रवाह को प्रभावित किया है। वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, उभरते बाजारों ने बफर बनाए हैं, नीतिगत ढांचे में सुधार किया है और बफर का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया है। वर्ष 2021 से भारत स्थिर व्यापक आर्थिक वातावरण के साथ दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत द्वारा अनुभव की गई 7 प्रतिशत से अधिक की औसत वृद्धि वैश्विक औसत से दोगुनी से भी अधिक है।
इस वर्ष का सम्मेलन कई विषयों पर केंद्रित होगा, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में सुधार, हरित परिवर्तन को वित्तपोषित करना, भू-आर्थिक विखंडन और विकास के लिए निहितार्थ, भारत और मध्यम आय का टैप, नौकरियाँ और कौशल, आर्टफिशियल इन्टेलिजन्स और सार्वजनिक नीति डिजाइन, लचीलापन बनाए रखने के लिए नीतिगत सिद्धांत।
इन सत्रों में कुछ चर्चाएँ इस प्रकार होंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार अधिक नियमित नौकरियाँ पैदा कर सकती है; किस प्रकार नियम-आधारित बहुपक्षीय प्रणाली को भू-आर्थिक विखंडन को रोकने के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए, तथा किस प्रकार बहुपक्षीय सहमति के माध्यम से प्रगति संभव बनाई जा सकती है; रोजगार सृजन के लिए एआई, एमएल, तथा फिनटेक में भारत के तुलनात्मक लाभ का उपयोग; भारत के वर्तमान विकास का आकलन करना तथा उन तरीकों पर विचार करना जिनसे भारत विकास को अधिकतम करके तथा नवाचार क्षमताओं को विकसित करके उत्पादकता वृद्धि को बनाए रख सकता है; वित्तीय प्रणाली को अधिक लचीला तथा कुशल बनाने के लिए आवश्यक सुधारों का अध्ययन करना; सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक दीर्घकालिक सुधारों की पहचान करना; तथा जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन की चुनौती तथा नवीकरणीय ऊर्जा में ऊर्जा संक्रमण को प्राप्त करने पर चर्चा करना।
सम्मेलन वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच सेतु-निर्माता के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका को प्रदर्शित करेगा। समावेशी विकास, जिम्मेदार डिजिटल प्रौद्योगिकी अपनाने तथा वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को बढ़ाने पर भारत की प्रतिबद्धता 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की इसकी आकांक्षा को रेखांकित करती है, जिसे कई लोग ‘भारतीय युग’ कह रहे हैं। सम्मेलन में होने वाली चर्चाएं आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक की आगामी वार्षिक बैठकों, सीओपी 29 और ब्राजील के जी-20 नेताओं के घोषणापत्र की पूर्वपीठिका के रूप में काम करेंगी।