घोंसले का वादा नहीं,पंख भी निकले कच्चे

घोंसले का वादा नहीं,पंख भी निकले कच्चे

रवि अवस्थी,भोपाल। वहीं,”चिड़िया अपने बच्चों को घोंसला नहीं, पंख देती है, जिससे वे ऊँचे आसमान में उड़ सकें।” यही नारा था ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ का, जिसे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लागू कर युवाओं को सपनों की उड़ान का भरोसा दिलाया गया। दावा था कि बेरोजगारों को कौशल प्रशिक्षण मिलेगा और 8 से 10 हजार रुपये मासिक वजीफा भी। लेकिन महज़ तीन साल में ही यह महत्वाकांक्षी योजना युवाओं के लिए ‘टूटी उड़ान’ साबित हो गई।

वादे बड़े, नतीजे छोटे

पिछले चुनाव में ‘लाड़ली बहना’ और ‘सीखो-कमाओ’ दोनों योजनाओं ने बीजेपी की सत्ता वापसी में अहम भूमिका निभाई। महिलाएँ लाड़ली बहना से और युवा सीखो-कमाओ से जुड़े। सत्ता बदलने के बाद भी लाड़ली बहना को तो सरकार ने सँभाला, लेकिन सीखो-कमाओ में उड़ान से पहले ही पंख काट दिए गए।

आज स्थिति यह है कि लाड़ली बहना योजना में हर महीने 1.25 करोड़ महिलाओं को 1600 करोड़ रुपये बांटे जा रहे हैं, जबकि सीखो-कमाओ के नाम पर दो साल में महज़ 65 करोड़ रुपये युवाओं तक पहुँचे।

बजट घटा, उम्मीद टूटी

शुरुआत में योजना का बजट 1000 करोड़ रखा गया। अगले साल यह घटकर 350 करोड़ और फिर डेढ़ सौ करोड़ पर आ गया। इसमें भी वित्त विभाग ने कैंची चला दी।

— पहले साल 1000 करोड़ में से सिर्फ 355 करोड़ मिले।

— दूसरे साल 350 करोड़ की जगह 240 करोड़ ही आवंटित हुए।

40% बजट भी खर्च न कर सके

तकनीकी कौशल विकास विभाग को जो भी बजट मिला, उसमें से 40% तक खर्च ही नहीं हुआ। तीन साल में महज़ 30-32 हजार युवाओं को स्टाइपेंड मिल पाया। विधानसभा में दिए गए आंकड़ों में भी भ्रम है—कहीं 65 करोड़ तो कहीं 72 करोड़ की राशि बताई गई।

पहले साल 23 हज़ार,अब सिर्फ 2 हज़ार हितग्राही
पहले साल साढ़े 9 लाख युवाओं ने पंजीयन कराया, जिनमें से 4 लाख ने ट्रेनिंग के लिए आवेदन दिया। लेकिन चयन प्रक्रिया ऐसी रही कि सिर्फ 23,174 युवाओं को ही मौका मिला। तीसरे साल यानी मौजूदा वर्ष में यह संख्या घटकर सिर्फ 2 हज़ार रह गई।

सेमिनार-वर्कशॉप पर भी ताला
शुरुआत में 89 लाख रुपये सेमिनार-वर्कशॉप पर खर्च हुए। अगले साल इस मद में एक रुपये तक नहीं खर्च हुआ। प्रशिक्षण सामग्री पर रखरखाव के लिए रखे 1.5 करोड़ रुपये भी पूरी तरह लेप्स हो गए।

बिजली कंपनियों को मुफ्त कामगार
योजना का फायदा सबसे ज्यादा बिजली कंपनियों ने उठाया। मौजूदा 2 हजार युवाओं में से अधिकांश वहीं लाइनमैन और तकनीकी कार्यों की ट्रेनिंग पा रहे हैं। जबकि ऑटोमोबाइल, एविएशन, फूड प्रोसेसिंग और केमिकल जैसे सेक्टर में जाने का सपना अधूरा रह गया।
रोजगार का कोई प्रावधान ही नहीं
विधानसभा में कौशल विकास मंत्री गौतम टेटवाल ने खुद माना कि यह केवल प्रशिक्षण योजना है, रोजगार देने का कोई प्रावधान इसमें नहीं है। अब तक ट्रेनिंग पाए युवाओं में से मात्र 275 को रोजगार मिला—यानी 0.3%। यह स्थिति ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ जैसी है।

32 जिलों में कोई ट्रेनिंग नहीं
हाल ही की समीक्षा बैठक में खुलासा हुआ कि प्रदेश के 32 जिलों में अब तक प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं हो पाई। इनमें मंदसौर, नीमच, दमोह, रीवा, शहडोल, रतलाम, विदिशा जैसे बड़े जिले भी शामिल हैं। इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे महानगरों में भी योजना का प्रदर्शन नगण्य रहा।

नेशनल अप्रेंटिसशिप में भी फिसड्डी
केंद्र की नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (NAPS) में भी प्रदेश पिछड़ गया। यहाँ 81 हजार संभावित वैकेंसी थीं, लेकिन ट्रेनिंग सिर्फ 20,485 युवाओं को मिली और नौकरी मिली महज़ 1,147 को।

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