कुछ समय पहले ही रिलीज हुई सुष्मिता सेन की वेब सीरीज ताली ट्रांसजेंडर सोशल वर्कर श्री गौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है। इस सीरीज में सुष्मिता सेन ने गौरी सावंत का किरदार निभाया है। इसके बाद से लोग गौरी सावंत की रियल लाइफ के बारे में पढ़ना चाहते हैं। हाल ही में जागरण से एक्सक्लूसिव बातचीत में गौरी सावंत ने अपने लाइफ एक्सपीरियंस शेयर किए हैं। उन्होंने बताया कि ताली सीरीज के रिलीज होने के बाद उनकी जिंदगी में क्या-क्या बदलाव आए हैं। सुष्मिता सेन का किरदार किस तरह उस रोल में ढल गया, इस पर भी उन्होंने बातचीत की है।
ताली सीरीज के रिलीज होने के बाद लाइफ में क्या बदला?
इसके जवाब में गौरी सावंत कहती हैं, “सुष्मिता सेन ने जिस तरह मेरे किरदार को जिया और लोगों में जिस तरीके से मुझे सराहा है, इससे बिल्कुल वैसी ही राहत मिली है, जैसे तपते पैरों को ठंडा रेत मिला हो। अगर दिन भर में मुझे 50 काॅल आते थे, तो अब 150 आने लगे हैं। लोग ट्रांसजेंडर्स को समझने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे पहले लोगों को पता नहीं था कि हिजड़ों को पैदा कौन करता है।”
“वो मेरी कहानी का सिर्फ ट्रेलर है”
गौरी कहती हैं, “सीरीज में जो देखा, आपने वो मेरी कहानी का सिर्फ ट्रेलर है, जबकि रियलिटी में इससे कई गुना ज्यादा जिल्लत, नफरत और धोखे मिले हैं। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। मैं उम्मीद करती हूं, इस सीरीज से लोग समझेंगे कि ट्रांसजेंडर्स की वास्तविक जिंदगी कैसी होती है। लोग हमारे समुदाय को देखने का नजरिया बदले। सकारात्मक बदलाव आएगा। हम भी नॉर्मल घर में पैदा होते हैं, किसी दूसरे ग्रह से नहीं आते हैं। एलियन नहीं हैं। ट्रांसजेंडर्स को बराबरी का मान-सम्मान और काम मिलना चाहिए।”
“हम भी नॉर्मल घर में पैदा होते हैं”
“2 जुलाई 1979 को पुणे के एक मराठी परिवार में मेरा जन्म हुआ था। पापा पुलिस में थे और मां हाउसवाइफ मेरे जन्म के समय डॉक्टर ने कहा था, सावंत सर बधाई हो, बेटा हुआ है। एक बेटी के बाद बेटा पैदा हुआ था, इसलिए मां-पापा बहुत खुश थे। पापा ने सबको मिठाई बांटी। बाकी बच्चों की तरह मेरे जन्म पर भी उत्सव मना। काफी सोच-विचार के बाद मां-पापा ने मेरा नाम गणेश नंदन रखा था। मुझे काफी प्यार से रखा गया, मेरी हर एक फरमाइश पूरी की जाती थी। पापा बाइक पर बिठाकर घुमाने ले जाते, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, वैसे-वैसे मैं उनके लिए शर्मिंदगी का कारण बनती गई। मां बहुत प्यार करती थी, लेकिन जब मैं सात साल की थी, तभी मां दुनिया छोड़कर चली गईं।”
“मां के बाद नानी ने पाला। मुझे नानी की साड़ियां पहनना अच्छा लगता था। सात-आठ साल की उम्र में मैं लड़कियों संग खेलती। स्कूल में बच्चे मेरा काफी मजाक उड़ाते थे। जैसे-जैसे में बढ़ रही थी, पापा ने भी सख्ती बरतनी शुरू कर दी। मैंने पापा को अपनी फीलिंग्स समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्होंने डांटा और बात करना छोड़ दिया। जब काॅलेज पहुंचीं तो मैं लड़कों के प्रति आकर्षित होने लगी। मैंने अपने परिवार को हर तरह से अपनी सेक्शुअलिटी के बारे में समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी भी स्वीकार नहीं किया। सिर्फ 16 साल की उम्र में 60 रुपए लेकर घर से निकल गई। उसके बाद पापा को कभी नहीं देखा। आजी से कभी नहीं मिली।”