एक ही मूर्ति में दो रूपों की अलग-अलग विधि से होती है पूजा

worshiped in different

 

यहां स्थापित हैं अद्भुत द्विमुखी गणेशजी

मंदसौर। मंदसौर को जहां श्री पशुपतिनाथ महादेव मंदिर के कारण पहचाना जाता है। वहीं मंदसौर की घनी बस्तीं जनकूपुरा में स्थित गणपति चौक में प्राचीन श्री द्विमुखी चिंताहरण गणपति मंदिर है। यहां पाषाण युगीन द्विमुखी भगवान गणेशजी की मूर्ति है। सात फीट ऊंची इस मूर्ति में भगवान गणेशजी एक तरफ सेठजी के स्वरुप में हैं तो दूसरी तरफ पंचसुंडी रुप में हैं।

सात फीट ऊंचाई वाली श्री गणेशजी की खड़ी मुद्रा वाली इस अप्रतिम नयनाभिराम मूर्ति का स्वरुप अत्यंत ही सुंदर व कलात्मक है। मूर्ति के आगे का भाग पंचसुंडी रुप में और पीछे का स्वरुप श्रेष्ठी (सेठ)की मुद्रा को प्रदर्शित करता है। मस्तक पर सेठजी के समान पगड़ी व शरीर पर वस्त्र पहने हुए भगवान श्रीगणेश काफी आकर्षक स्वरुप में दर्शन दे रहे हैं। आगे व पीछे दोनों तरफ के पूजा के विधान भी अलग-अलग है। इस अनोखी मूर्ति के दर्शन के लिए दूर-दूर से अनेक दर्शनार्थी आ रहे हैं।

स्वप्न में दर्शन दिए तब जाकर नाहर सैय्यद तालाब से निकाली मूर्ति

मूर्ति का ज्ञात इतिहास लगभग 90 वर्ष पुराना है। हालांकि मूर्ति काफी प्राचीन हैं जो आक्रांताओं ने नाहर सैय्यद दरगाह के पास बने तालाब में फेंक दी थी। इस लिहाज से मूर्ति का इतिहास अर्वाचीन भी हो सकता है। प्रतिमा का प्राकट्य स्थल नाहर सैय्यद दरगाह के पास स्थित तलाई है। शहर के निवासी मूलचंद स्वर्णकार को स्वप्न में इस स्थान पर मूर्ति होने का आभास हुआ। स्वप्न की पुष्टि के लिए मूलचंद स्वर्णकार ने मौके पर जाकर देखा तो पत्थरों में दबी यह मूर्ति सामने दिखाई दी। मूलचंद स्वर्णकार को संवत 1986 में आषाढ़ सुदी पंचमी 22 जून 1929 को मूर्ति को प्रतिष्ठापित करने का प्रेरणात्मक आदेश प्राप्त हुआ। उन्होंने आषाढ़ सुदी 10 विक्रम संवत 1986 को शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ इस मूर्ति को पत्थरों के बीच से निकलवाकर धूमधाम से बैलगाड़ी में विराजित कर आगे बढ़ाया।

गणपति चौक में आकर रुक गई बैलगाड़ी, यहीं बना भव्य मंदिर

बुजुर्गों के अनुसार गणेशजी की मूर्ति को नरसिंहपुरा क्षेत्र में किसी उचित स्थान पर प्रतिष्ठापित करने हेतु बैलगाड़ी से ले जा रहे थे। उस समय नरसिंहपुरा जाने हेतु सुगम मार्ग जनकूपुरा, मदारपुरा होकर ही था। बैलगाड़ी जनकूपुरा में वर्तमान स्थान पर गणपति चौक पर आकर रुक गई। काफी कोशिश के बाद भी बैलगाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। भगवान गणेशजी की इच्छा को सर्वोपरि मानकर धर्मालुजनों द्वारा इसी स्थान पर एकादशी को मूर्ति की विधिपूर्वक स्थापना कर दी गई। तब से यह स्थान गणपति चौक के नाम से जाना जाता है।

पंचतत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं पंचसुंडी श्रीगणेश

द्विमुखी मूर्ति के दोनों तरफ के मुख अलग-अलग रुप व भावमयी मुद्राएं प्रकट करते हैं। आगे के मुख में पांच सुंड है पीछे के मुख में एक सुंड व सिर पर पगड़ी धारण किया विशेष श्रृंगार है। जो भगवान श्री गणेशजी को श्रेष्ठीधर सेठ के रुप में अभिव्यक्त करता है। जनकूपुरा क्षेत्र के महानुभावों की अगुवाई व नगर वासियों के सहयोग से मंदिर को भव्य रुप दिया गया। वर्तमान में यह मंदिर मंदसौर के साथ ही समूचे अंचल के धर्मालुजनों की आस्था का केंद्र बन चुका है। प्रति बुधवार सायंकाल महाआरती होती है। मंदिर में अन्य देवी देवता की प्रतिमाएं भी स्थापित है।

मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण

धर्मशास्त्र के उल्लेख के अनुसार प्रतिमा को पंचतत्वों से संबंधित माना गया है। आगे के मुख जिस पर पांच सुंड है उन्हें विघ्नहर्ता गणेशजी कहते हैं। पांचों सुंड की दिशा बांयी तरफ है पीछे के मुख की सुंड दाहिनी दिशा में हैं इसे संकट मोचन गणेशजी कहा जाता है। मान्यता है कि श्री द्विमुखी गणपति मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

ऐसी विलक्षण मूर्ति के दर्शन करने दूर-दूर से दर्शनार्थी आते है व अपनी मन की कामनाएं पूरी होने की कामना करते हैं। जहां द्विमुखी चिंताहरण गणेशजी का मंदिर है। पहले इस स्थान को प्रचलित नाम इलाजी चौक के नाम से जाना जाता था जो अब गणपति चौक के नाम से प्रचलन में आ गया है।

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