भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कभी भी दलबदल करने वालों को महत्व नहीं मिला, लेकिन वर्ष 2020 में दल-बदल से कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इसे हवा मिल गई। इस चुनाव में तो छोटे-बड़े सभी दलों ने दलबदलुओं को हाथोंहाथ लेकर मैदान में उतार दिया। कांग्रेस ने दूसरे दलों से आए 13 तो भाजपा ने 16 उम्मीदवारों को प्रत्याशी बनाया है।
ऐसे उम्मीदवार भी मैदान में
कुछ तो ऐसे उम्मीदवार भी इस बार मैदान में हैं जो दो से भी अधिक दलों में रह चुके हैं तो कुछ ने हर चुनाव में दल बदल लिया। इसमें सबसे बड़ा उदाहरण मैहर विधानसभा सीट के प्रत्याशी नारायण त्रिपाठी हैं। वह निर्दलीय, सपा, कांग्रेस और भाजपा में रहने के बाद अब विंध्य विकास पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं।
अभय मिश्रा ने तीन चुनाव में हर बाद दल बदला
रीवा से ही सेमरिया विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अभय मिश्रा पिछले तीन चुनाव में हर बार दल बदल कर मैदान में उतरे। वह भाजपा से विधायक रह चुके हैं। अब कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। सिंगरौली से कांग्रेस प्रत्याशी रेनू शाह पहले सपा, फिर बसपा और दो बार से कांग्रेस से चुनाव लड़ रही हैं।
सपा और बसपा से आए नेताओं को भी मौका दिया कांग्रेस ने
कांग्रेस की बात करें तो पार्टी ने भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी और बसपा से आए नेताओं को भी मैदान में उतारा है। पिछले बार विधानसभा निर्दलीय जीतकर पहुंचे प्रदीप जायसवाल और विक्रम सिंह राणा इस बार भाजपा से मैदान में हैं तो कांग्रेस ने पिछले बार निर्दलीय जीते केदार डाबर और सुरेंद्र सिंह शेरा को मैदान में उतारा है।
बसपा ने उठाया लाभ
नेताओं की भागदौड़ का बसपा ने भी अच्छा लाभ उठाया। पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस से आए कई बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने में देरी नहीं की। यहां तक कि कुछ सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के पूर्व विधायक भी बसपा से उतर गए हैं, जिससे मामला त्रिकोणाीय हो गया है।
पहली बार ऐसा नजारा
चुनाव के चंद दिन पहले इस तरह की उथल-पुथल पहली बार देखने को मिली है। सभी दलों ने पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी की परवाह किए बिना दूसरे दल से आए नेताओं को गले लगाया है। इस कारण कुछ प्रत्याशियों को विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है।
दीपक जोशी का तो हुआ विरोध
भाजपा से कांग्रेस में गए दीपक जोशी को कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए और गाड़ी में तोड़फोड़ तक कर दी। इसी तरह से रीवा की त्योंथर विधानसभा सीट में कांग्रेस से भाजपा में आए सिद्धार्थ तिवारी का भी विरोध हो रहा है। अब तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही सामने आएगा कि दल बदल कर चुनाव में उतरे प्रत्याशी कितना सफल होते हैं।
भाजपा कांग्रेस से आगे
हालांकि, दलबदुलओं को टिकट देने के मामले में भाजपा कांग्रेस से आगे है। कांग्रेस ने 13 तो भाजपा ने 16 ऐसे चेहरों को उतारा है जो दूसरे दल से आए हैं। भाजपा और कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों से आए उन्हीं नेताओं को चुनाव लड़ाया है जिन्हें वर्ष 2018 के चुनाव में अच्छे मत मिले थे। वह मुकाबले में थे। इसके अलावा जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण पक्ष में होने के कारण भी इन्हें प्रत्याशी बनाने में देर नहीं की। आम आदमी पार्टी ने भी दूसरे दल से गए कुछ उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया है।