सिनेमा विभाजन को पाटने की समृद्ध भाषा है: सर्बियाई फिल्मकार बोरिस गट्स

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में उज्बेकिस्तान, एस्टोनिया और सर्बिया की तीन विशिष्ट फिल्मों का प्रदर्शन शामिल है। दूरदर्शी निर्देशकों और निर्माताओं की ये तीन खास फिल्में स्थिति के अनुकूल ढ़लने, आत्म-अन्वेषण और जूझने की अदम्य मानवीय भावना के विषयों पर आधारित हैं। ये फिल्में दर्शकों को विविध सांस्कृतिक परिदृश्यों की यात्रा कराती हैं।

इन फिल्मों में द सॉन्ग सस्टक्सोटिन उज़्बेकिस्तान के एक सूखाग्रस्त गांव की मार्मिक कथा दर्शाती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित खुसनोरा रोज़मातोवा द्वारा निर्देशित यह फिल्म प्रकृति के प्रकोप और सामाजिक निराशा से उबरने की एक समुदाय की लड़ाई दिखाती है। कज़ान इंटरनेशनल मुस्लिम फिल्म फेस्टिवल में “मानवतावाद के लिए” पुरस्कार से सम्मानित रोज़मातोवा ने मानवीय कथा गढ़ने की अपनी अटूट प्रतिबद्धता दिखाते हुए अपनी दूसरी सम्मोहक फीचर फिल्म सिने-प्रेमियों के सामने रखी है।

इसी क्रम में हाउस जमशेद नारज़िकुलोव द्वारा निर्देशित उज़्बेकिस्तान की एक मार्मिक कहानी पर आधारित फिल्म है। यह एक दुखी विधवा की कहानी है जो अविवेकपूर्ण ऑनलाइन चुनौती की वजह से अपने इकलौते बेटे को खो बैठती है। न्याय की तलाश में वह अपने शांत गांव से बड़े महानगर के अराजकतापूर्ण माहौल में पहुंच जाती है जहां अपनी शक्ति और मूल्यों को फिर से जुटाकर कठोर वास्तविकताओं से जूझती है। नारज़िकुलोव की यह पहली फीचर-फिल्म सूक्ष्म विश्लेषणात्मक कथ्य-शिल्प सामने रखता है और व्यक्तिगत त्रासदी को परिवर्तनकारी आत्म-अन्वेषण से जोड़ता है।

एस्टोनिया और सर्बिया की तरफ से प्रसिद्ध रूसी प्रयोगधर्मी फिल्मकार बोरिस गट्स द्वारा निर्देशित डेफ लवर्स फिल्म शामिल है। इस समसामयिक कहानी का केन्द्र इस्ताम्बुल है। फिल्म यूक्रेनी सोन्या और रूसी दान्या की कहानी दिखाती है कि कैसे वे साझा संघर्षों और आकांक्षाओं से जूझते हुए विदेश के एक शहर में जिन्दा रहने की चुनौती का सामना करते हैं। फिल्म साझा भविष्य और उथल-पुथल से भरे अतीत के बीच पहचान, स्थिति के अनुरूप ढलने की उनकी जद्दोजहद दिखाती है। निर्देशक गट्स निर्धनता, नस्लवाद और लाइलाज बीमारी जैसे गंभीर मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। इस अंतरराष्ट्रीय प्रीमियर में प्रस्तुत फिल्म डेफ लवर्स में उन्होंने अपनी इसी विशिष्टता और दूरदर्शिता की छाप छोड़ी है।

पत्रकारों से संवाद में बोरिस गट्स ने मजबूत भाषा के रूप में सिनेमा के महत्व का उल्लेख किया, जिसकी युद्धग्रस्त परिदृश्यों में भी विभाजन को पाटने की क्षमता है।

पुरस्कृत फिल्म निर्देशक करीम ने दर्शकों के सवाल के जवाब में सीमाओं के पार लोगों को एकजुट कर मतभेद दूर करने तथा साझा कहानियों से मानवों को एक-दूसरे के करीब लाने में सिनेमा की भूमिका पर जोर दिया। निर्देशकों ने “बेहतर भविष्य के निर्माण” में भी सिनेमा की भूमिका पर जोर दिया।

ये फिल्में सीमाओं के पार लोगों को प्रभावित करने, संस्कृतियों को आपस में जोड़ने और मानवीय स्थिति की जटिलताओं को दर्शाने की सिनेमा की सार्वभौमिक शक्ति दिखाती हैं। कहानी कहने की विशिष्ट शैली, भावात्मक वर्णन और कलात्मक प्रतिभा के साथ ये फिल्में भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2024 में दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ने के प्रति आश्वस्त कराती हैं।

Previous articleहमारा संविधान, हमारा सम्मान
Next articleजिसके घर में गाय का कुल, वह घर गोकुल : मुख्यमंत्री डॉ. यादव