राजधानी के कुशाभाऊ ठाकरे (केबीटी) कंवेंशन सेंटर को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए 99.38 करोड़ रुपए की राशि मंजूर कर दी है। इस राशि से पास में मौजूद मछली घर की जमीन पर एमआईसीई की कैटेगरी (मीटिंग्स, इंसेंटिव्स, कॉन्फ्रेंस और एग्जीबिशन्स) के मानकों के अनुरूप कन्वेंशन सेंटर को अपग्रेड कर विभिन्न सुविधाओं का विकास किया जाएगा। मीडिया सेंटर व बिजनेस सेंटर भी बनेंगे।
अंतरराष्ट्रीय कंवेंशन सेंटर बनाने की योजना करीब 15 साल पहले बनी थी। विवादों के बाद लगभग तीन साल पहले मिंटो हॉल का रिनोवेशन पूरा हो गया और मछली घर तोड़ दिया गया था। केंद्र सरकार ने मीटिंग्स, इंसेंटिव्स, कॉन्फ्रेंस और एग्जीबिशन्स प्रोजेक्ट के तहत यह राशि स्वीकृत की है। कुशाभाऊ ठाकरे अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसकी क्षमता सिर्फ 800 लोगों के बैठने की है। मछली घर की जमीन पर होने वाले निर्माण के बाद यहां 2000 लोगों के बैठने की क्षमता होगी। बिजनेस टूर पर आने वालों के लिए भी यहां सुविधाएं दी जाएंगी। विजिटर ठहर भी सकेंगे। डाइनिंग हाल, रेस्तरां, प्रदर्शनी हाल, गैलरी और बड़े सम्मेलन, बैठकों और एक्जीबिशन के लिए भी सुविधाएं होंगी।
3 साल पहले बदला मिंटो हॉल कानाम
करीब 3 साल पहले मिंटो हॉल का नाम बदला गया था। इसकी नींव 113 साल पहले वर्ष 1911 में रखी गई थी। मिंटो हॉल मप्र के बनने से लेकर पहली सरकार के गठन तक का साक्षी रहा है। पहली सरकार ने शपथ इसी हॉल में लिया था। इस भवन की खूबसूरती देखते ही बनती है। पुरानी विधानसभा रहे मिंटो हॉल में कई सेलिब्रिटी आ चुके हैं और इसकी खूबसूरती की तारीफ में कसीदे गढ़ चुके हैं। सरकार इसके हॉल में विभिन्न आयोजन करती है। यही हॉल अब कुशाभाऊ ठाकरे के नाम से जाना जा रहा है और अब विश्व स्तर पर अपग्रेड किया जाएगा। कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर ब्रिटिश और भोपाल रियासत के अच्छे रिश्तों का प्रतीक तो है ही, यह उस समय के इंग्लैंड में चल रहे राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिबिंब भी है। यह शहर के दूसरे महलों से अलग क्यों और कैसे है, इस पर इतिहासकारों की अपनी राय है। जानकारी के अनुसार, 1909 में जनवरी की शुरुआत में भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो ने भोपाल की बेगम को संदेश भिजवाया कि वे भोपाल आना चाहते हैं। बेगम ने उनके स्वागत की तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी। नवंबर 1909 में लॉर्ड मिंटो अपनी पत्नी के साथ भोपाल आए। उसी साल इंडियन कांउसिल एक्ट लागू हुआ था। इसके तहत ब्रिटिश राज्य ने रियासतों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए फैमिली जैसे रिलेशन रखने की शुरुआत की थी। पत्नी के साथ मिंटो का दौरा इसी एक्ट के तहत था। प्रिंस ऑफ वेल्स जॉर्ज पंचम 1911 में अगले महाराज होंगे, इसकी घोषणा 1909 में हुई। जॉर्ज पंचम को खुश करने के लिए ही मिंटो हॉल का आकार जॉर्ज पंचम के मुकुट के आकार का रखा गया था। मिंटो हॉल को बनने में 24 साल लगे। इसके निर्माण पर उस समय 3 लाख रुपए खर्च हुए थे। थे। इसके लिए बहुत सारा मैटेरियल इंग्लैंड से मंगवाया गया था, जिसमें आयरन की ढली हुई सीढिय़ां, फॉल्स सीलिंग थी। बाद में मिंटो हॉल भोपाल राज्य की सेना का मुख्यालय भी बना। 1946 में मिंटो हॉल में इंटर कॉलेज लगना शुरू हुआ, जिसका नाम बाद में बदलकर हमौदिया कॉलेज रख दिया गया।