फायबर फूड को खाने में करें शामिल, शरीर को बचाएगा कई तरह के रोगों से

Include fiber food in food

 

वर्तमान में जीवन शैली से संबंधित रोग बढ़ते जा रहे हैं। बिगड़ती जीवन शैली के कारण कई लोग मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, फेटी लीवर, मोटापा, थाइराइड, ब्लड प्रेशर, कब्ज आदि समस्याओं की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। इन रोगों से बचने के लिए जीवन शैली को सुधारने की आवश्यक्ता है। जीवन शैली कई मायनों में हमें बदलना चाहिए जिसकी शुरुआत सबसे पहले खान-पान से करना होगी। जितना जरूरी शारीरिक श्रम है उतना ही जरूरी बेहतर भोजन करना भी है।

फायबर युक्त भोजन कई रोगों से बचा सकता है

भोजन में रेशे युक्त पदार्थों का शामिल किया जाना बहुत जरूरी है। आहार व पोषण विशेषज्ञवृंदा खांडवे के अनुसार यदि हर व्यक्ति अपने आहार में रेशेदार पदार्थों को शामिल कर ले तो कई रोगों से बहुत हद तक बचा रहा जा सकता है। प्रकृति ने हमें ऐसे कई तत्व दिए हैं जिनका सही ढंग से उपयोग करने हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं। बल्कि कई रोगों को दूर भी कर सकते हैं और यह तत्व हैं फल व सब्जी। अक्सर लोग भोजन केवल स्वाद के मापदंड को ध्यान में रखते हुए करते हैं लेकिन हमें उसके गुणों को देखना चाहिए।

भोजन को पचाने में करता है मदद
फायबर युक्त भोजन रंगहीन, स्वादहीन व गंधहीन प्रकृति का होता है। यह पाचन क्रिया को सही रखने में सहायता करता है साथ ही यह विषैले तत्वों को प्रभावहीन करने और उनके उत्सर्जन में सहायक होता है। कोलेस्ट्राल को नियंत्रित रखने में यह बहुत सहायक है। यह भोजन पचाने में मदद करता है। जिसे कब्ज की समस्या है उनके लिए रेशेयुक्त भोजन बहुत लाभदायक होता है। फायबर मल को इकट्ठा कर बाहर निकालने में सहायता करता है जिससे कब्ज नहीं होता। इसके सेवन से पेट भरा महसूस होता है।

प्रति हजार कैजोरी में 14 ग्राम फाइबर

ऐसे लोग जो अपने भोजन पर काबू नहीं रख सकते उनके लिए फायबर युक्त भोजन बहुत लाभदायक होता है। इसके सेवन से पेट जल्दी भरता है और शरीर पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता। यह एसीडिटी को भी नियंत्रित रखने में मदद करता है। प्रत्येक एक हजार कैलोरी खाने में 14 ग्राम फाइबर होना चाहिए। रेशेदार पदार्थ छिलका युक्त दाल, खडा अनाज, चौकोर सहित आटा, हरि पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल, अंकुरित अनाज, सलाद, सूखे मेवे में पाया जाता है। अमरूद, मटर, नाशपाती, सेब, केला, रसिले फल में फायबर अधिक होता है। भोजन की थाली में फायबर की मात्रा कुल भोजन की कम से कम 25 प्रतिशत होना चाहिए।

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