हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह में एक बार अमावस्या तिथि पड़ती है। ये तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष फल मिलता है। अमावस्या का दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध-तर्पण के लिए भी विशेष महत्व रखता है। अमावस्या तिथियों में भाद्रपद मास में पड़ने वाली अमावस्या का महत्व कई गुना ज्यादा माना जाता है। इस साल भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि 14 सितंबर को पड़ रही है। मान्यता है कि इस अमावस्या तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान-तर्पण करने से सभी पाप धुल जाते हैं और पितरों को शांति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या की तिथि 14 सितंबर की सुबह 4:48 से शुरू होकर अगले दिन 15 सितंबर की सुबह 7:09 पर समाप्त होगी। वैसे तो आप 14 और 15 सितंबर दोनों ही दिन आप अमावस्या का दान और तर्पण कर सकते हैं लेकिन स्नान-दान करने का शुभ मुहुर्त 14 सितंबर की सुबह 4:43 बजे से 5:19 बजे तक है।
– समस्या होगी दूर
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। अगर किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव ना हो, तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य देने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
अगर आप पितरों से संबंधित श्राद्ध-तर्पण आदि करना चाहिए। इससे पितृ दोष दूर होता है और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन भगवान भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। साथ ही भगवान शंकर की पूजा-अर्चना से भी जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
स्नान के बाद दान देने से ग्रह बाधाएं दूर होती हैं। खास तौर पर अन्न दान या वस्त्र दान से पाप कटते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
इन बातों का रखें ध्यान
-भाद्रपद अमावस्या के दिन सुबह पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं और शाम को पीपल की जड़ के पास सरसों के तेल का दीया जलाकर रखें।
-इस दिन श्राद्ध कर्म या पूजा कुश के आसन पर बैठकर करनी चाहिए। इससे आपकी पूजा शीघ्र स्वीकार होती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
-अमावस्या के दिन रात के अंधेरे में सुनसान रास्तों से दूर रहें और अकेले ना निकलें। इस दिन नकारात्मक शक्तियां ज्यादा सक्रिय रहती हैं और आप पर हावी हो सकती हैं।
-इस दिन शाम की पूजा या तंत्र-मंत्र से जुड़े कार्य ना करें। विधि-विधान में मामूली गलती भी नुकसानदेह हो सकती है।