बच्चों के लिए खतरनाक है प्रदूषण, जहरीली हवा इन बीमारियों का बना रहा है शिकार

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दुषित हवा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है.अक्टूबर के महीने में हवा की गुणवत्ता तेजी से खराब होने लगती है जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. ऐसे में ये दिल्ली एनसीआर और मुंबई जैसे शहरों में रहने वालों के लिए आफत बन जाता है. यह प्रदूषित हवा बड़ों से ज्यादा बच्चों को और बुजुर्गों को नुकसान पहुंचता है. हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें और कण बढ़ते जा रहे हैं. ये वायु प्रदूषक बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं.

प्रदूषित हवा के कारण बच्चों में निमोनिया, फेफड़ों की समस्याएं, कमजोर दिल, ब्रोंकाइटिस, साइनस और अस्थमा जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है और बच्चों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं. इतना ही नहीं, इस प्रदूषण में सांस लेने वाले बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिससे वे कई प्रकार की बीमारियों का शिकार आसानी से हो जाते है.

फेफड़ों की समस्याएं 

दूषित हवा में मौजूद विषाक्त पदार्थ बच्चों के फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा हैं. प्रदूषण फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करता है और ऑक्सीजन के स्तर को घटाता है. इसके अलावा, प्रदूषित हवा में मौजूद कण फेफड़ों में सूजन पैदा करते हैं जिससे सांस लेने में परेशानी होती है. दूषित हवा के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है. इस प्रकार प्रदूषण फेफड़ों को कमजोर करता है और बच्चों को अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है. यही कारण है कि प्रदूषित हवा बच्चों के फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है.

बच्चों में निमोनिया का कारण

दूषित हवा में मौजूद जहरीले कण और गैसें बच्चों में निमोनिया जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनती हैं. दूषित हवा में साँस लेने से बच्चों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं और वे आसानी से निमोनिया जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. इसलिए, प्रदूषण निमोनिया जैसी बीमारियों का कारण बनता है.

बच्चों के विकास में बाधा 

बढ़ते प्रदूषण की वजह से हवा में नाइट्रोजन, सल्फर जैसी विषाक्त गैसों का स्तर बहुत अधिक हो गया है. जब बच्चे इस प्रदूषित हवा को सांस के जरिए अपने शरीर में लेते हैं, तो इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और विकास पर पड़ता है. गैसें बच्चों के दिमाग तक पहुंचकर उनके मानसिक और बौद्धिक विकास को धीमा कर देती हैं. साथ ही, शारीरिक विकास भी प्रभावित होता है.

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