भोपाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि महाराणा प्रताप देश के शौर्य के प्रतीक हैं। भोपाल में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप लोक का निर्माण किया जाएगा। यह उनके त्याग, तपस्या, संघर्ष और बलिदान को श्रद्धांजलि होगी। स्मारक में महाराणा प्रताप के जीवन और कार्यों को चित्रित किया जाएगा। साथ ही उनके सात सहयोगियों भामाशाह, पुंजाभील, चेतक और अन्य के योगदान को भी चित्रित कर दर्शाया जाएगा। महाराणा प्रताप द्वारा अपनी संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष तथा जीवन मूल्यों पर अडिग रहने की उनकी क्षमता से आने वाली पीढ़ी अवगत हो सके और तदनुसार संस्कार ग्रहण कर सकें, इस उद्देश्य से महाराणा प्रताप लोक का निर्माण सार्थक होगा। प्रदेश में शालेय पाठ्यक्रम में महाराणा प्रताप के शौर्य और वीरता की कहानियाँ पढ़ाई जाएंगी। साथ ही महाराणा प्रताप कल्याण बोर्ड का गठन भी किया जाएगा। मुख्यमंत्री चौहान लाल परेड मैदान में महाराणा प्रताप जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री चौहान ने महाराणा प्रताप के वंशज डॉ. मेवाड़ का रामदरबार भेंट कर किया स्वागत
मुख्यमंत्री चौहान ने महाराणा प्रताप, महाराज छत्रसाल और महारानी पद्मावती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप जला कर जयंती समारोह का शुभारंभ किया। केंद्रीय कृषि और किसान-कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, महाराणा प्रताप के वंशज महाराज कुमार डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़, प्रदेश के मंत्रीगण, जन-प्रतिनिधि, समाज के वरिष्ठजन और सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री चौहान ने डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का तलवार तथा रामदरबार भेंट कर स्वागत किया। मुख्यमंत्री चौहान को डॉ. मेवाड़ ने हल्दी घाटी की मिट्टी भेंट कर अभिवादन किया। समाज के वरिष्ठ जन और सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों का साफा बांध कर सम्मान किया गया तथा समारोह के प्रतीक-चिन्ह के रूप में तलवार भेंट की गई।
महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व सभी के लिए प्रेरणादायी
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व और कृतित्व हम सभी को प्रेरणा देता है। ईमानदारी और सच्चाई से समाज के सभी वर्गों की सेवा करना, प्रगति और विकास के रास्ते पर प्रदेश को अग्रसर करने की प्रेरणा भी हमें महाराणा प्रताप से मिलती है। महाराणा प्रताप शौर्य, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के साथ वैभवशाली, गौरवशाली राष्ट्र के निर्माण के प्रतीक भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वैभवशाली, गौरवशाली, सम्पन्न, समृद्ध और शक्तिशाली भारत का निर्माण हो रहा है। विश्व के समृद्ध और शक्तिशाली देशों में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है।
वीर पुरूषों के जन्म-दिवस पर अवकाश देना, उनका ऋण उतारने का एक प्रयास मात्र
मुख्यमंत्री चौहान ने महाराज छत्रसाल बुंदेला को प्रणाम करते हुए कहा कि उनके संबंध में मान्यता थी कि “छत्ता तोरे राज में, धक-धक धरती होय- जित-जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फतेह होए”। यह शूरवीरों की धरती है। ऐसे वीर पुरूषों के जन्म-दिवस पर अवकाश देना, उनका ऋण उतारने का एक प्रयास मात्र है। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप की प्रतिबद्धता का स्मरण करते हुए कहा कि यह मेरा प्रण है कि जो भी लोग हमारे देश और प्रदेश के हितों से खिलवाड़ करेंगे वह छोड़े नहीं जाएंगे। आतंकवादियों को समाप्त करना हमारा धर्म है।
हल्दी घाटी की मिट्टी भेंट में मिलने से अभिभूत हुए मुख्यमंत्री
महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ द्वारा हल्दी घाटी की मिट्टी भेंट करने से अभिभूत मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि यह मेरे जीवन की अमूल्य निधि है। हल्दी घाटी की मिट्टी से पवित्र कुछ भी नहीं है, यह भारत के शौर्य और वीरता की प्रतीक है। इस माटी का मान-सम्मान और शान कभी जाने नहीं दूँगा। यह माटी सदैव महाराणा प्रताप के शौर्य की याद दिलाएगी और सही दिशा में कार्य के लिए निरंतर प्रेरित करती रहेगी।
केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान ने महाराणा प्रताप की जयंती पर अवकाश और भोपाल में महारानी पद्मावती की मूर्ति स्थापित कर ऐतिहासिक कार्य किया है। मुख्यमंत्री चौहान ने अपनी अधिकांश घोषणाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया है, जो उनकी बड़ी उपलब्धि है।
मुख्यमंत्री चौहान कर रहे हैं भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित
डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित कर रहे हैं। वे महाराणा प्रताप जी के आदर्शों पर चलकर प्रदेश का विकास कर रहे हैं। उन्होंने महाराणा प्रताप जी की जयंती पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर यह संदेश दिया है कि हम सब उन्हें याद करें और उनके शौर्य, बलिदान, देश प्रेम और जीवन मूल्यों से प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य करें।
महाराणा प्रताप और महाराजा छत्रसाल की शौर्य गाथा की संगीतमय प्रस्तुति
कार्यक्रम में महाराणा प्रताप और महाराज छत्रसाल की शौर्यगाथा की संगीतमय प्रस्तुति दी गई, जिसे उपस्थित जन-समुदाय द्वारा सराहा गया। पूरा वातावरण वीर रस से ओत-प्रोत हो गया। महाराणा प्रताप की जय, महाराज छत्रसाल की जय के नारों से पांडाल गूंज उठा।
कार्यक्रम में मंत्री सर्वडॉ. अरविंद सिंह भदौरिया, कमल पटेल, विश्वास सारंग, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, डॉ. प्रभुराम चौधरी, सुउषा सिंह ठाकुर, भोपाल महापौर श्रीमती मालती राय, भोपाल सांसद सुप्रज्ञा सिंह ठाकुर, पूर्व मंत्री रामपाल सिंह और अन्य जन-प्रतिनिधि उपस्थित थे।
महाराणा प्रताप (9 मई 1540–19 जनवरी 1597)
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ। वे महावीर राणा सांगा के पौत्र थे। वे इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ़ प्रण के लिये अमर हैं। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया, अंततः अकबर महाराणा प्रताप को अधीन करने में असफल रहा। महाराणा प्रताप की नीतियां शिवाजी महाराज से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों तक के लिए प्रेरणा-स्त्रोत बनीं। महाराणा जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा चेतक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। महाराणा 72 किलो का कवच पहनकर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। भाला और कवच सहित ढाल-तलवार का वजन मिलाकर कुल 208 किलो का वजन उठाकर वे युद्ध लड़ते थे।
30 मई. 1576, बुधवार को हल्दी घाटी के मैदान में विशाल मुगलिया सेना और रणबाँकुरी मेवाड़ी सेना के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ गया। युद्ध में महाराणा ने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए, परन्तु अकबर की विशाल सेना के आगे राजपूती सेना नहीं टिक पाई और राणा प्रताप को जंगल में शरण लेनी पड़ी, पर उन्होंने अकबर की दासता स्वीकार नहीं की। चित्तौड़ को छोड़ कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों को शत्रु से पुन: छीन लिया। महाराणा ने चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा संपूर्ण मेवाड़ पर अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया। उदयपुर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद मुगलों ने कई बार महाराणा को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुँह की खानी पड़ी। आखिरकार, युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को चांवड में हुई।
महाराजा छत्रसाल
मध्यकालीन राजपूत योद्धा महाराजा छत्रसाल बुन्देला (4 मई 1649-20 दिसम्बर 1731) भारत के मध्ययुग के एक महान प्रतापी योद्धा थे। उन्होंने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना स्वतंत्र हिंदू राज्य स्थापित किया और ‘महाराजा’ की पदवी प्राप्त की। महाराजा छत्रसाल का जन्म राजपूत परिवार में हुआ था और वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। वे अपने समय के महान वीर, संगठक, कुशल और प्रतापी राजा थे। उनका जीवन मुगलों की सत्ता के खिलाफ संघर्ष और बुन्देलखण्ड की स्वतन्त्रता स्थापित करने के लिए जूझते हुए निकला। वे जीवन के अन्तिम समय तक अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष करते रहे।