दिल्ली, कांग्रेस ने कहा है कि सरकार राजद्रोह कानून को सख्त बनाकर औपनिवेसिक मानसिकता का परिचय दे रही है और चुनाव में विपक्ष की आवाज दबाने के लिए इसके इस्तेमाल को आसान बना रही है।कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार विधि आयोग के जरिए कानून को उच्चतम न्यायालय की भावना के प्रतिकूल मजबूत करके इस कानून के तहत तीन साल की न्यूनतम सजा को सात साल कर रही है।उन्होंने कहा “सरकार उच्चतम न्यायालय की भावना के प्रतिकूल राजद्रोह कानून को सख्त करके सजा के प्रावधान को बढ़ा रही है और विपक्ष की आवाज दबाने के लिए इस कानून को भयानक, खतरनाक और दर्दनाक बनाने में लगी है। सरकार ने प्रस्ताव के जरिए इस कानून के तहत तीन साल की सजा को सात साल न्यूनतम किया है। राजद्रोह कानून से विपक्ष की आवाज दबाने की तकनीक पर काम करके सरकार इसके जरिए औपनिवेशिक मानसिकता को थोपने का प्रयास कर रही है।”
प्रवक्ता ने कहा कि 60 साल पुराने कानून को लागू किया जा रहा है। जो कानून न्यायपालिका ने बनाया था उसे अब विधायिका द्वारा बनाया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने जिस कानून की जरूरत को नकारा है और उसे बहुत कमजोर करने की बात कही है सरकार उसी को सख्त बनाने में लगी हुई है। इस कानून का दुरुपयोग न हो इसको लेकर कोई सुरक्षा चक्र कानून में नहीं दिया गया है।उन्होंने कहा कि 2014 के बाद से इस कानून का ज्यादा दुरुपयोग हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आम चुनाव से पहले कानून को मजबूती प्रदान कर संदेश दिया जा रहा है कि इसका इस्तेमाल विपक्ष की आवाज दबाने के लिए किया जाएगा।प्रवक्ता ने कहा, “मोदी सरकार आने के बाद से 2020 तक राजद्रोह के मामलों में करीब 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। कोरोना काल में ऑक्सीजन तथा अन्य समस्याओं के विरोध के मामले में 12 केस दर्ज हुए। इसी तरह 21 केस पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुए हैं और 27 केस सीएए-एनआरसी के मुद्दे से जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश में इन मामलों की 60 प्रतिशत जमानत याचिकाएं निरस्त होती हैं। जनवरी 2021 में शशि थरूर, राजीव सरदेसाई, मृणाल पांडे, कौमी आवाज के जफर आगा, कारवां पत्रिका के परेशनाथ, एल्गार परिषद, विनोद दुआ आदि के विरुद्धकानून का दुरुपयोग किया गया है।उन्होंने कहा गणतंत्र में राजद्रोह की कानून को हटाने की बजाय उसे मजबूत करने की सरकार से वजह पूछी और कहा कि मोदी सरकार में कानून के दुरुपयोग के आंकड़े बढ़े हैं। ऐसा लगता है कि चुनाव को देखते हुए प्रताड़ना को ध्यान में रखकर इस कानून को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का सरकार का इरादा है।