एआई केवल रचनात्मकता को ही बढ़ा सकता है, मानव मष्तिष्क की जगह नहीं ले सकता – रमेश सिप्पी

55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में, “पूर्णता के लिए जुनून: रमेश सिप्पी का दर्शन” नाम के एक आकर्षक सत्र में भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित निर्देशकों में से एक के जीवन एवं उनकी कलात्मकता की समृद्ध पड़ताल प्रस्तुत की गई। रमेश सिप्पी के शानदार करियर पर प्रकाश डालने वाले इस सत्र का संचालन मीडिया एवं मनोरंजन कौशल परिषद के सीईओ मोहित सोनी ने किया।

इस सत्र की शुरुआत मोहित सोनी द्वारा प्रस्तुत की गई एक भूमिका से हुई। सोनी ने रमेश सिप्पी के विशाल अनुभवों से सीखने और पूर्णता की उनकी परिभाषा को समझने के अनूठे अवसर पर जोर दिया। बातचीत की शुरुआत फिल्म उद्योग में सिप्पी के शुरुआती दिनों के बारे में चर्चा के साथ हुई। इस चर्चा में फिल्म ‘शहंशाह’ में उनकी संक्षिप्त लेकिन एक यादगार शुरुआत पर प्रकाश डाला गया। सिप्पी ने बताया कि महज नौ वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार फिल्म सेट का अनुभव हासिल हुआ था। यह फिल्म निर्माण की उनकी आजीवन यात्रा की दिशा में पहला कदम था। औपचारिक फिल्म स्कूलों के आगमन से बहुत पहले, उन्हें फिल्म निर्माण की शिक्षा सीधे फिल्म सेट पर मिली।

‘अंदाज़’ से लेकर ‘सीता और गीता’ जैसी प्रतिष्ठित फिल्मों तक की अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, सिप्पी ने फिल्म निर्माण की दुनिया में निरंतर सीखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “सीखने का कोई अंत नहीं है।” “हम हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं और कलाकारों से लेकर क्रू तक, पूरी टीम के साथ फिल्म निर्माण की प्रक्रिया के हर चरण में पूरी तत्परता से शामिल होते हैं।” ‘शोले’ के निर्माण को याद करते हुए, उन्होंने एक महत्वपूर्ण दृश्य की शूटिंग के बारे में एक दिलचस्प किस्सा साझा किया। सिप्पी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मौसम की प्रतिकूल स्थिति के कारण शुरुआती असफलताओं के बावजूद, कैसे उदास आसमान के नीचे फिल्माए गए अंतिम परिणाम ने उस दृश्य के लिए एकदम सही मूड हासिल किया। हर फ्रेम में पूर्णता प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, उन्होंने बताया, “शोले में एक दृश्य को शूट करने में 23 दिन लग गए।”

सिप्पी ने यह भी बताया कि कैसे तकनीकी प्रगति ने फिल्म निर्माण से जुड़े परिदृश्य को बदल दिया है। उन्होंने विशेष प्रभावों के विकास पर चर्चा की और बताया कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में फिल्म निर्माण को बेहतर बनाने की क्षमता है। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि तकनीक को रचनात्मकता के साथ सहयोग करना चाहिए, न कि उसे प्रतिस्थापित करना चाहिए। सिप्पी ने कहा, “एआई कभी भी मानव मस्तिष्क की जगह नहीं ले सकता। यह केवल रचनात्मकता का पूरक बन सकता है और सही निर्णय लेने के लिए दिमाग का उपयोग करना आवश्यक है।”

यह पूछे जाने पर कि वह अपनी कहानियों को बड़े पर्दे पर कैसे जीवंत बनाते हैं, सिप्पी ने अपनी फिल्मों की सफलता का श्रेय टीम वर्क और सहयोग को दिया। उन्होंने कहा, “यह टीम का सामूहिक प्रयास होता है, जो हमें पूर्णता तक पहुंचने में मदद करता है।”

सत्र के अंत में, रमेश सिप्पी ने फिल्म निर्माण में विकास के महत्व पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “गलतियां करना अच्छा होता है।“ “प्रत्येक अनुभव हमें कुछ मूल्यवान सबक प्रदान करता है। हम अपनी असफलताओं से सीखते हैं और अपने भावी प्रयासों को बेहतर बनाते हैं।”

सत्र का समापन एक प्रेरणादायक विचार के साथ हुआ, जिसमें सिप्पी ने सीखने, बदलाव को अपनाने और सिनेमा की लगातार विकसित हो रही दुनिया में पूर्णता के लिए निरंतर प्रयास करने के मूल्य को दोहराया।

 

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