धार्मिक आयोजनों का राजनीतिकरण, जनता होती है परेशान

कोरोनकाल की विभीषिका के बाद इसवर्ष हजारों स्थानों पर गणेश झांकी लगाई गई है और हजारों स्थानों पर नवरात्र में देवी पूजन के लिए पंडाल लगाये जाने की तैयारी शुरू हो गई है।

सामुहिक धार्मिक आयोजन जहां पहले आम जनता की आमोद प्रमोद, आपसी मेलजोल, मनोरंजन और शैक्षिणिक होते थे। अब पूर्णतः राजनीतिक माहौल से सरावोर हो गए है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम, जागरण, महाआरती आदि जो की कभी पूर्ण श्रद्धा के साथ आत्मा के शुद्धिकरण और आत्मशांति के लिए आयोजन होते थे अब पूर्णतः राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के आयोजन होते है।

मंच की गरिमा होती है खंडित

राजनीतिकरण के कारण देखने मे आया है जिस मंच में भगवान को विधि विधान के साथ विराजमान किया जाता उसी मंच पर भेड़ झुण्डनुमा राजनीतिक लोग धार्मिक कार्यक्रम की गरिमा को तारतार का पूजन व्यवस्था को भी भंग कर देते है। देखने आया है जनता से सम्बोधन के नाम पर मन्त्रोच्चार, जाप को रोक दिया जाता है।

समाधान

धार्मिक मंच के साथ पास ही राजनीतिक मंच लगाया जाये जिस पर केवल आमंत्रित गणमान्य ही जाये।

जनता होती है परेशान

परिवार के साथ धार्मिक आयोजन का लाभ लेने निकली जनता को राजनीतिक व्यवस्थाओं के कारण अनेकों कठिनाइयों से गुजरना होता है।

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